'गृहदेव पाटक'
यह नाम बर्त्तमान Odisha के पल्टिकाल मैप मे आज ढ़ुँडने पर भी नहीँ मिलता !
आज से 1400वर्ष पूर्व
600वीँ सदी मे
# शैळोभवराजवंश के राजाओँ
का आधिपत्य
उत्कळ तथा समस्त भारतीय उपनिवेशोँ पर था ।
कहते है 6ठीँ सदी मे
# भौमकरलोग शैळोभवोँ को
# उत्कलदेश मे पराजित कर राजा बने
और
इस तरह से शैळोभव राजवंश का शासन केवल भारतीय उपनिवेश यानी इंडोनेसिया, जावा ,बोर्णिओ , मालेसिया मे सीमित रहगया !
बाद मे इन्ही शैळोभवोँ ने इंडोनेसिया मे श्रीविजय साम्राज्य कि नीँव रखी !
खैर ये भौमकर कौन थे कहाँ से आये
कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही मिलते
लेकिन असम के ओहम लोगोँ के साथ इनका वैवाहिक संबन्ध
होने का पता चला है ।
भौमकर राजा पहले पहल बौध धर्म अनुयायी थे
परंतु च्युँकि अब उनकी नयी राजधानी # जाजपुरमे स्थापित हो गयी
प्रजा को देख राजा को भी शाक्त धर्म उपासक बनना हुआ ।
सातवीँ सदी मे हर्ष वर्धन ने भौमकर राजाओँ को परास्त कर उत्कलदेश को अपने शासन अधिनस्त कर लिया ।
और अन्ततः 8 वीँ सदी मे ये कुछ हदतक स्वतंत्र हुए !
आसाम तब कामरुप कहलाता था और सातवीँ सदी मे
आसाम के अहोम राज्य मे
कोई एक व्यक्ति समुचे राज्य पर
एकाधिपत्य शासक नहीँ होता था
वरन 12 सामन्तोँ के हातोँ मे शासन भार होता था
इस तरह के शासनप्रणाली को सामन्त चक्र शासन कहाजाता है ।
अहोम लोगोँ के नामसे बादमे इस क्षेत्र का नाम आसाम हुआ है ।
अब च्युँकि भौमकर जाति के लोगोँ का अहोम जाति के लोगोँ के साथ सांस्कृतिक वैवाहिक संपर्क था
इसलिये 7वीँ सदी के उत्कल देश मे भी सामन्त चक्र शासन प्रणाली लागु हुआ होना मानाजाता है !
उनदिनोँ बर्तमान जाजपुर जिल्ला मे यह गृहदेव पाटक सहर हुआ करता था ।
आगे चलकर इसी भौमकर राजवंश के एक नहीँ दो नहीँ
चार रानीओँ ने उत्कल देश सिँहासन अलंकृत किया था
जिनमे से # बकुलमहादेवी प्रमुख है ।
मानाजाता है भूयाँ जनजाति के लोग ही प्राचीन भौमकरोँ के बर्तमान वंशज है ।
आठवी सदी के भौमकर राजा शुभकर परमसौगत के राजत्वकाल मे हर्ष साम्राज्य से उत्कल प्रायः स्वतंत्र हो गया था
शुभकर के पुत्र शान्तिकर ने नागदेश राजकन्या त्रिभुवन महादेवी से विवाह करलिया
लेकिन वो राज भोग नहीँ पाया
उसकी अकाल मृत्यु हो गई ।
शान्तिकर के युँ अचानक मृत्यु से
सामन्तचक्र भूयाँ सामन्तोँ ने सर्व सहमति से परम वैष्णवी त्रिभूवन महादेवी को भौम सिँहासन मे बिठाया !
इस राज्याभिषेक के संदर्भ मे एक ताम्र फलक मिला है
जिसमे लिखा है
"हे देवी !
पूर्व भी संसार त्यागकर धर्म कार्य को स्वयं का सर्वस्व मानकर गोस्वामिनीओँ ने प्रजाओँ के सुखदुख कि रक्षा के लिए बहुबार बसुन्दरा को चलाया था !
इसी तरह अब आप भी प्रसन्न होइए और इसी तरह सुचिर साम्राज्य चलाओ
लोगोँ का अनुग्रह करो
परंपरागत राज्यलक्षी को अपना मानकर स्वीकार करो
सामन्तचक्र द्वारा इस तरह के निवेदन से त्रिभुवन माहादेवी कात्यायनी कि तरह सिँहासन पर जा बैठी"
इससे पताचलता है कि इससे पहले भी कोई कोई रानी उत्कलीय सिँहासन पर बैठकर राजत्व कर चुकि थी ।
भौम वंश मे गौरी महादेवी ,बकुळ महादेवी ,परम महेश्वरी ,दण्डी माहादेवी नाम्नी रानीओँ ने राजत्व किया
इससे उत्कल देश मे प्राचीनकाल से ही नारीओँ को पुरुषोँ के बरबार सम्मान मिलने
कि बात प्रमाणित हो जाता है ।
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