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अनंत_वासुदेव_मंदिर भूवनेश्वर कि सर्वप्रथम पुरातन विष्णु मंदिर है ।पुरातन काल मे भूवनेश्वर को शैव क्षेत्र के रुप मे जानाजाता था यहाँ कई प...

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

गजपति महाराजा पुरुषोत्तम देव

गजपतिराजा कपिलेन्द्र देव के बाद उनके पुत्र पुरुषोत्तम देव ( ୧୪୬୮ AD- से ୧୪୯୭ AD ) कलिगांधिपति बने !
अपने बुद्धि शौर्य व वक्तित्व के वल पर वे सूर्यवंशी गजपति शासकोँ मे स्वयं को सर्वोत्कृष्ट प्रमाण करपाए थे ।
दक्षिण भारतमे उत्कलीय संस्कृति प्रचार प्रसार मे उनका बहुत बड़ा योगदान है !
उन्होने अपने शासनकाल मे जगन्नाथ चेतना को बढ़ावा दिया ! पुरषोत्तम देव गजपति राजवंश के प्रथम श्रेष्ठ राजा कपिलेन्द्र देव के अठारा पुत्रोँ मे से सबसे होनाहार व योग्य थे ।
नियमानुसार राजगद्दी का उत्तराधिकारी उनके जैष्ठभ्राता हम्भीर देव को होना था
परंतु पिता कपिलेन्द्र देव ने प्रिय कनिष्ठ पुत्र पुरुषोत्तम देव कलिगांधिपति बनाया ।

[[ जगन्नाथ संस्कृति कि अमूल्य धरोहर #मादलापाँजी मे लिखा है -- श्रीजगन्नाथजी ने कपिलेन्द्र देव को ऐसा करने हेतु स्वप्न मे आदेश दिया था]]

1468 AD मे कपिलेन्द्र देव के अवसान बाद पुरुषोत्तम देव का सिँहासन आरोहण अभिषेक उत्सव दक्षिण के कृष्णानदी किनारे संपन्न हुआ ।
पुरुषोत्तम देव को सिँहासन आरोहण के बाद मूलतः दो समस्याओँ का सामना करना पड़ा था ।
एक तो जैष्ठभ्राता हम्बीर देव से सिँहासन के वजह से गृहयुद्ध कि समस्या व दुजा विजयनगर राजा साल्व नरसिँह का गजपति राज्य हतियाने कि कुचैष्टा !

जैसे ही पुरुषोत्तम देव ने राजगद्दी संभाला
वौखलाये हम्बीरदेव ने अपने समर्थकोँ के साथ विद्रोह किया और खुद को दक्षिणभारत के अधिकृत भूभागोँ के स्वाधीनराजा घोषणा करदिया !

अंत मे सिँहासन को लेकर के दोनोभाईओँ मे जंग छिड़गया । 1676 AD मे पुरुषोत्तम देव ने अपने पितृदत्त राज्योँ को अपार जनसमर्थन व सामरिक शक्ति के बलपर पुनः जीत लिया ।

पुरुषोत्तम देव ने अपने बड़े भाई हम्बीर देव को युद्ध मे हराया
परंतु दयावश हो अथवा भातृप्रेम के चलते उन्होने हम्बीर देव को माफ करते हुए उन्हे खेमुण्डी राज्य का सामन्तराजा नियुक्त करदिया थे । ये उनके महानता का सबसे बड़ा सबुत है !

1476 AD के अन्तिम दिनो मे उनका दाक्षिणात्य अभियान प्रारम्भ हुआ !
दक्षिण के वाहमानी राज्यमे जन असन्तोष का फायदा उठाते हुए पुरुषोत्तम देव ने 1484 AD को राजमहेन्द्री व कोण्डाभिड़ु पर विजय पताका फहराया था !
उनका विजय रथ गोदावरी से काँची और काँची से कर्णाट देश तक चला ! उनके दाक्षिणात्य
विजय के विषय मे
मादलापाँजी मे कई कथाएँ है !

काचीँ अभियान हो या देवी तारिणी को काँची से उत्कल ले आने जैसे कई जनसृति प्रचलित पाया जाता है !

दक्षिण भारत कि उदयगिरी दुर्ग को पुनः प्राप्त करने हेतु पुरुषोत्तम देव ने कर्णाट राजा नरसिँह के खिलाफ 1489 AD मे युद्ध घोषणा करदिया ।
युद्ध मे कर्णाट राजा हारे और इस तरह उदयगिरि का वो विवादित भूभाग 1489-90 मे कलिगं मे मिला दिया गया था ।
यह युद्ध पुरुषोत्तम देव का सर्वश्रेष्ठ व अन्तिम विजय था ।
कलिगं/उत्कल पर प्रायः 30वर्षोँ तक राज करने के बाद
1497 मे उन्होने दुनिया छोड़ दिया !!
अपने जीवन के आखरी दिनोँ मे वे साहित्य चर्चाओँ पर मनोनिवेश करने लगे थे ।
उनके द्वारा अवसर जीवन मे लिखागया
Mukti chintamani ,Abhinab gitogovinda ,naama maalika ,durgotsva ,visnubhakti ,kalpadruma dipika chanda आदि संस्कृत व ओड़िआ काव्य ग्रंथ प्रसिद्ध हुआ है ।

रविवार, 27 दिसंबर 2015

---कालापाहाड़ को संबलपुर ने दिया था मंदिर तोड़ने कि सज़ा ए मौत् ---

दलित वर्ग के महापण्डित कालापाहाड़ को ब्राह्मण बताकर ब्राह्मणोँ का अपमान करना चाहते है ।
ब्राह्मणोँ के वजह से भारत मुस्लिममय हो गया !! हिन्दु कमजोर हो गये ,चीरनिद्रा मे चलेगये आदि आदि !!!
वहीँ कुछ ब्राह्मण ऐसे भी है जो कालापाहाड़ के नाम पर समाज को ये जताना चाहते हे
देखो !! ब्राह्मणोँ के श्राप और आशिर्वाद दोनोँ ही खतरनाक है !!! हम क्रोध मे आये तो राज बदल देगेँ धर्म बदल देगेँ .....


इस आततायी के नाम ,जन्मस्थान ,जाति ओर धर्म को लेकर अमुमन विवाद देखा गया है
इसलिये हम इस विवाद से इतर उसे सिर्फ एक आततायी ,आक्रमणकारी , लुटेरा ही समझे
जिसने ओड़िआओँ को गहरा जख्म दिया !!!

कहते है कालापाहाड़ ने ओड़िशा के बड़े बड़े मंदिरो को लुटपाट के बाद तोड़ दिया था !!!
मेदिनीपुर से पुरी जगन्नाथ तक के क्षेत्र मे उसके पैशाचिक कुकर्म अब जनसृति बनगयी है ।

~~Kalapahad को लेकर के ओड़िशा मे प्रचलित जनसृति ~~

Odishan/ओड़िआओँ के अंतिम स्वाधीन राजा मुकन्द देव जी के राजत्वकाल मे राजनैतिक अस्तिरता तेज हो गयी थी !!! ओड़िशा को गलत हातोँ मे जाने से बचाने के लिये दक्षिणभारतीय मुस्लिम व बंगाल के तुर्क शासकोँ से उन्हे बारबार युद्ध करना पड़ा था ! अंततः उन्होने मोगल साम्राज्य के झंडे तले आना ही श्रेयश्कर समझा ! 1565 मे अकबर के सेना ,भूरिश्रेष्ठा (Bhurshut) शासक रुद्रनारायण व मुकुन्द देव कि कलिँग सेना ने मिलकर बंगाल के तुर्क नवाब सुलैमान कर्रानी को गंगा त्रिवेणी संगम के निकट धुल चटा दिया था !! कहाजाता है त्रिवेणी के युद्ध मे कलिगंसेना के सेनापति राजीव लोचन राय ने बड़ी वीरता व अदम्य साहस का पदर्शन किया था और उनके पराक्रम से बंग नवाब भी प्रभावित हुए थे !!

सुलैमान कर्रानी ने मोगल सल्तनत के साथ संधि कर लिए
और अपने चिकनी चुपणी बातोँ से सेनापति राजीव लोचन राय के दिल जीतकर उन्हे बंगाल आने का न्यौता दे दिया !!!

राजीव लोचन राय बिना मुकुन्द देव से मंत्रणा किए कुछ दिन बाद बंगाल कि ओर कुच कर गये !!!
सुलैमान कर्रानी कि चाल सफल साबित हुई
सेनापति राजीव लोचन को सुलेमान कर्रानी कि बेटी से ईश्क हो गया !!

नवाब कन्या कि प्रेम अंधे होकर राजीव लोचन ने धर्म और जन्मस्थान से तौबा कर लिया !! लेकिन जल्द ही जब उन्हे एहसास हुआ कि ये प्यारव्यार एक धोखा था
वो पुरी लौट आये....लेकिन एक देशद्रोही विश्वासघातक को कौन पनाह देना चाहेगा ?
उसीदिन राजीव लोचन राय का वैचारिक मौत हो गया था महानदी के जल मे....और बदलेमे जन्म हुआ जाति विद्वेषी आततायी कलापाहाड़ का !!!

चंद सालोँ मे उसने वैष्णवोँ कि बड़े बड़े मंदिरोँ को नेस्तेनाबुद करदिया था.....

सारे ओड़िशा को लुटलेने के बाद कालापाहाड़ Diamond city sambalpur पर हमले कि तैयारी मे जुटगया !

उन दिनोँ संबलपुर-बरगड़ क्षेत्र मे बलराम देव राजा हुआ करते थे [1540 A.D. to 1557 A.D] जब उन्हे पताचला कि कलापाहाड़ संबलपुर लुटने कि फिराक मे है वो युद्ध के लिये अपने सेना को तैयार हो जाने का निर्देश दे दिया !!!

संबलपुर मे आज जहाँ मा समलेई कॉलेज है वहाँ कलापाहाड़ व उसके सेना ने पड़ाव डाला था ।

राजा ने उनपर रातमे आतर्कित हमला किया ओर इससे कालापाहाड़ मारा गया !!

च्युँकि कालापाहाड़ बंग नवाब का जमाई था और कहीँ उसके मौत से बौखलाकर बंग नवाब संबलपुर पर हमला न कर दे
इसलिये
ओड़िशा मे देवी समलाई के नामसे एक अफवाह उड़ाया गया....

---क्या था अफवाह ----

जब कालापाहाड़ व उनके सैनिक हमले से पूर्व आराम फर्मा रहे थे देवी समलाई ने ग्वाल स्त्री के रुप मे आकर उन्हे विषयुक्त #घोलदही या छास पिला दिया
जिससे सभी कि वहीँ पर अकालमृत्यु हो गई !!!
आज ये जनसृति लोकविश्वास बनगया है
बादमे इसी चौहानवंशी राजा बलराम देव ने संबलपुरमे देवी समलाई का भव्य मंदिर बनवाया था !!

2006 तक संबलपुर मे कालापाहाड़ का समाधी हुआ करता था
2002 के बाद संबलपुर के कुछ मुस्लिम परिवारोँ ने कालापाहाड़ के समाधी पर फुल व चादर चढ़ाना शुरुकरदिया.....
कहा जाता है
इससे बौखलाये हिन्दु संगठनोँ ने वो समाधी खोदकर कालापाहाड़ का हिन्दु रीतिरिवाजोँ से अंतिम संस्कार करदिया था !!


मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

~~~~Singhabahu-The Forgotten Hero~~~~

‪ सिँहपुर ‬कलिँग का पुरातन प्राचीन राजधानीओँ मे से एक था ।
वौधग्रंथ ‪ महावंश‬मे महाराजा सिंहवाहु द्वारा सिँहपुर कि स्थापना किए जाने कि बात लिखा है ।
राजा सिँहवाहु के विषय मे इस बौधग्रंथ मे एक कथा है जो इसप्रकार है.........
--------
कलिँग देश मे बंगराजा से कलिगं राजकन्या का विवाह बड़े धुमधाम से हो गया था ।
वरकन्या बंगदेश लौट रहे थे तभी रस्ते मे एक सिद्ध साधु से मिले ।
विद्वान ब्राह्मण साधु ने नववरबधु को आगाह करते हुए कहा कि तुम्हारी कन्या का विवाह जंगली जानवरोँ के अधिपति से होगा !!!
साधुजी भविष्यवाणी सुनाकर अपने रस्ते हो लिये !
नवदंपत्ति के पास उस समय प्रतिक्षा करने के अतिरिक्त कोई उपाय न था ।
समय बीतता चला गया और निश्चित समय पर बंगदेश मे एक कन्या का जन्म हुआ । उसका नाम रखागया सुप्पाकुमारी ।
कन्या जन्म होते ही बंगदेश के राजा का भविष्यवाणी को लेकर चिन्ता बढ़गयी ।
उन्होने राजकुमारी को बाहारी दुनिया से दूर अंगरक्षकोँ से सुरक्षित एक गुप्त जगह मे रखदिया ।
युवावस्ता को प्राप्त होने पर राजकुमारी को ये बाधाबंधनो से चिढ़ होने लगा ।
एक दिन बंगदेश आये एक नाटकमंडली के साथ वो राजभवन से चोरीछुपे भाग निकली !!
नाटक मंडली का काफिला समृद्ध ‪ मगध_साम्राज्य ‬कि और जा रहा था परंतु बीच मे ‪ लदा ‬या ‪ लड़ा ‬नामक स्थान पर ‪ सिँह_छाल_व_मुखा धारी ‬कुछ ‪ विद्रोही_जंगली ‬लोगोँ ने काफिले पर हमला करदिया !
[ महावंश ‪ बौधग्रंथ‬मे इन्हे ‪ सिँह ‬कहागया है ] !
सभी बंधकोँ को लुट लेने के बाद मार दिया गया और
उन सिँहवेशधारी विद्रोहीओँ के सरदार ने राजकुमारी से बलपूर्वक विवाह किया !
बंगदेश कि राजकुमारी को विद्रोही सरदार ने एक गुंफा मे कैद रखा था ।
कालान्तर मे राजकुमारी ने एक पुत्र व कन्या को जन्म दिया
पुत्र का नाम था सिँहवाहु
वहीँ कन्या का नाम ‪ सिँहाशावली ‬रखागया !
एक दिन बंगदेशीय सेनापति को कहीँ से सुचना मिला कि बंग राजकुमारी को विद्रोही सिँह सरदार ने बंदी बना रखा है ।
बंग राजा को ज्ञात होने पर उन्होने सिँह सरदार की सीर के बदले इनामी राशी कि घोषणा करवा दिया । युवक सिँहवाहु मातृविछेद से पिताविरोधी हो गया था
वो लदा प्रान्त को
सिँहवेशधारी विद्रोहीओँ से बचाने के लिये लढ़ने लगा और एक दिन सिँहवाहु ने अपने ही विद्रोही पिता को मार कर अपनी माता की अपमान का बदला ले लिया ।
अपनी माँ से मिलने सिँहवाहु बंगाल कि ओर रवाना हो गया
वहीँ उधर बृद्धावस्था के कारण बंगराजा चलवसे !!
सिँहवाहु बंगाल मे कुछ दिन तक राजा बने रहे परंतु उन्हे अपनी जन्मभूमि
लादा कि याद आ रही थी ! अंततः उन्होने बंग सेनापति को बंगाल का राज सौँप दिया और लादा लौट आये !!!
---कालान्तर मे यही सिँहवाहु कलिँग देश के राजा बने !
---इसी सिँहवाहु के परम प्रतापी पुत्र विजय ने लंका जय किया था और तबसे लंका का ‪#‎ सिँहल‬नाम प्रचलन मे आया ।
---सिँहवाहु कि पुत्री सुमिता के नाम से इंण्डोनेसिया के एक द्वीप का नाम रखागया जो बाद मे ‪ सुमात्रा ‬हो गया ।
---मालेसिया के नीचे छोटा सा देश Singapoore का नाम Odisha के पुरातन राजधानी सिँहापुर के
नामसे रखागया था ।
---श्रीलंका कि बर्तमान जातीय ध्वज मेँ सिँह के हाथ मे तलवार सिँहवाहु के सम्मानार्थे चित्रित है । च्युँकि कलिँग राजा ने लंकावासीओँ को उनदिनोँ समुद्रीलुटेरोँ से बचाया था ।
लेकिन आज.... सिँहपुर नगर एक Ghost city से बढ़कर कुछ नहीँ है ।
गंजाम जिल्ला कार्यालय से पश्चिम मे 115 माइल दुर लागला नदी किनारे इस नगर कि मृतशरीर निर्जिव पड़ा हुआ देखा जा सकता है ।

~~रामचंद्रदेव कि संघर्षगाथा~~


16वीँ सदी के बाद से जगन्नाथ मंदिर पर कईबार मुसलमानोँ ने हमला किया
और सबसे पहला हमला कालापाहाड/रक्तवाहु ने 1568 मे किया था !
तब से श्रीजगन्नाथ पुरी पर 168 साल तक विधर्मीओँ ने हमला किया परंतु हर बार आक्रमणकारी विधर्मी नाकाम रहे !
1733 मे ‪#‎ तकि_खाँ‬कटक के नाएव निजाम् बनकर आया और आते ही ओड़िशा मे नरसंहार लुटपाट का दौर शुरु हुआ ।
लेकिन उसके लाख प्रयत्न करने पर भी ओड़िआ लोगोँ का जगन्नाथ के प्रति आस्था ज्योँ का त्योँ बना रहा ।
जोरजबरदस्ती धर्मान्तरण करने हेतु जगन्नाथ को उत्कलीय जनता के मन से हटाना उसके लिये अति आवश्यक हो गया था ।
च्युँकि तृतीय अनगंभीम देव के बाद से श्रीजगन्नाथ ही ओड़िआओँ के असली राजा थे और
खोर्दा के राजा सिर्फ उनका प्रतिनिधित्व कर रहे थे ।
1733 मे ही उसने पुरी सहर पर हमला कर दिया तब उससे श्रीविग्रह को बचाने के लिये गजांम जिल्ला मे आठगड़ स्थित मारदा नामक जगह पर गुप्तरुप से छुपा दिया गया !
धर्मांध तकि खाँ पगला गया था वो गाँव गाँव छानने लगा ।
लेकिन वो जगन्नाथ को खोजने मे विफल रहा !!!
उधर वो कटक लौटा ही था कि खोर्दाराजा रामचंद्र देव
ने तकि खाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया !
ओड़िशा इतिहास मे 18वीँ सदी के राजा रामचंद्रदेव को एक कमजोर शासक मानाजाता है ।
परंतु उनकी संघर्षगाथा और जगन्नाथप्रीति उनके व्यक्तित्व को झुकने नहीँ देता ।
इस युद्ध मे रामचंद्र देव का जीत निश्चित था !
वो अपने सफल योजना तथा आतर्कित हमले के लिये शुरुवात से ही तकि खाँ पर भारी पड़ रहे थे ।
इतिहास साक्षी हे
‪#‎ हिन्दु‬किसीसे हारते है तो सिर्फ और सिर्फ ‪#‎ जयचंद‬जैसे लोगोँ के लिये ।
खोर्दा राज्य का सेनापति
‪#‎ वेणु_भ्रमरवर‬को राजगद्दी कि लालसा थी वो शत्रृओँ के साथ जा मिला !
एक विश्वासघाति सेनापति के वजह से
तकि खाँ के हातोँ रामचंद्रदेव बंदी बनाये गये ।
तकी खाँ चाहता तो रामचंद्र देव को वहीँ मार सकता था परंतु उसने सोचा ..,
यदि उत्कल का राजा ही मुस्लिम बनजाएगा तो उसके देखादेखी बाकि लोग भी इस्लाम धर्म अंगिकार कर लेगेँ..,
उसने रामचंद्र देव के आगे एक संधि का प्रस्ताव रखा
संधि के मुताबिक राजा को "ईस्लाम धर्म कबुल करने तथा तकी खाँ कि बहन ‪#‎ रजिआ‬से शादी करना था !!!
राजा विवश थे या दूरद्रष्टा !
जो भी हो बिना माँगे उन्हे एक और मौका मिल रहा था ।
उन्होने कुछ सोचते हुए संधि का प्रस्ताव मान लिया ।
ईस्लाम कबुल करते हुए तबसे वो ‪#‎ हाफिज_कादर_वेग‬कहलाये ।
राजा खोर्दा लौट आये ..,
रामचंद्र देव खोर्दा लौट आये !
खोर्दा लौटने पर तकी खाँ और अमिन चाँद कि सभी चालोँ को नाकाम करते हुए रामचंद्र देव ने ओड़िशा के प्रायः सभी सामन्त राजा व जमिदारोँ को इकट्ठा किया ।
धर्मिय भावावेग मे
राज्य के सभी पाइकवीर एकजुट हुए और एक सशस्त्र शोभायात्रा मे जगन्नाथ बलभद्र व सुभद्रा कि प्रतिमाओँ को चिलिका के मध्य स्थित गुरुवरदाई द्वीप से पुरी जगन्नाथ मंदिर लाया गया था !
बाद मे तकि खाँ का फिर कभी हिम्मत नहीँ हुई जगन्नाथ मंदिर पर हमला करने कि......
- - - - - - रामचंद्र देव मुस्लिम बनने के बाद भी जगन्नाथ जी के भक्ति मे
ड़ुबे रहते थे !!!
परंतु अब उनके लिये जगन्नाथ मंदिर मे प्रवेश निषेध हो गया था ।
बड़े बड़े पण्डितोँ मे कई वाद विवाद के बाद ये निष्कर्ष निकाला गया कि अन्य संप्रदाय के लोग सिँह द्वार से जगन्नाथ जी को देख सकेगेँ.....
खास रामचंद्र देव के लिये सिँहद्वार का खास गेट बनाया गया और उसका नाम रखा गया पतितपावन.....
आज भी यहाँ से किसी भी संप्रदाय का व्यक्ति भगवन का दर्शन कर सकता है
------- प्रसिद्ध ओडिआ कथाकार व राजनेता ‪#‎ सुरेद्र_महान्ति ‬जी ने प्रसिद्ध
‪#‎ नीलशैल‬व ‪#‎ निलान्द्रीविजय‬
उपन्यास के जरीये रामचंद्र देव कि संघर्षमय जीवन कि वर्णना किया है ।