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गुरुवार, 28 मई 2015

फकिरमोहन सेनापति जी की बुद्धिमता

ओड़िआ भाषा को पुनः जीवित करनेवाले संक्रान्ति पुरुष (Fakir mohan senapati) व्यासकवि फकिरमोहन सेनापति जी युवावस्था मेँ बांग्ला भाषी पत्रपत्रिकाओँ मेँ बांग्ला कविता व प्रबन्ध लिखाकरते थे । उन दिनोँ ओड़िआ भाषाको लुप्त करने कि चालेँ चली जा रही थी ,बंगाल मेँ स्थानीय लेखको द्वारा "ODIA EK SWOTANTRO BHASA NOOY " आदि लेख लिखेजानेलगे ! फकीर मोहनजी ने ओड़िआ भाषा को बचाने कि ठान ली और ओड़िआ साहित्य रचना करने मे लग गये ।
वे जीवनपर्यन्त लिखते गये कभी रुके नही कविता ,कहानी ,उपन्यास प्रबन्ध सहित्य कि हर क्षेत्र मेँ अपने प्रतिभा दिखाए ।
प्रेमचंद व फकिर मोहन सेनापति जी की जीवनी व रचनाओँ मेँ काफी समानताएँ देखि जा सकती है । ओड़िआ भाषा मेँ पहला क्षुद्रगल्प "रेबति" को फकिरमोहन जी ने हीँ लिखा था ।
उत्कल सम्मिलनी बनाकर मातृभाषा को बचानेवाले बुद्धिजीविओँ मेँ उनका नाम सबसे पहले आता है ।
वालेश्वर जिल्ला मेँ जन्मेँ फकिरमोहन जी का असली नाम व्रजमोहन था , वे खंडयात परिवार मेँ जन्मे थे । वाल्यकाल मेँ फकिर बाबा के कृपा से बचजाने के वजह से उनकी दादी उनको फकिरमोहन बुलाने लगी और ये नाम रहगया ।
ओड़िशा के कई राजपरिवारोँ मेँ वे दिवान रहे ! जीवन की आखिरी दिनोँ मेँ वे बालेश्वर जिल्ला राजपरिवार के दिवान थे ।

उनदिनोँ(1920-1929) ओड़िशा मेँ लोग ब्रिटिस व राजाओँ से उबकर कुछ लोग
#प्रजामेली बनाकर सशस्त्र आंदोलन करने लगे थे । इन आंदोलनकारीओँ द्वारा ज्यादातर राजनवरोँ पर ही हमला किया जा रहा था जबकी असली शत्रु अंग्रेज इसे कुचलने मेँ कामियाब हो जाते ।

ऐसा ही एक प्रजामेली आंदोलन बालेश्वर जिल्ला मेँ हुआ । विद्रोहीओँ के द्वारा बालेश्वर राजनवर का घिराव किया गया । बालेश्वर राजा व राजपरिवार गुप्तरस्तोँ से कटक के लिये निकल लिये पर फँस गये देवान फकिर मोहन व कुछ और राजकर्मचारी । उन सभी कैदीओँ समेत विद्रोहीओँ ने फकिरमोहन को भी बंदी बनालिया ।

विद्रोहीओँ का जोश दुगना हो चुका था वे सब राजनवर लुटेजाने को लेकर काफी उन्मादी हो रहे थे ।

फकिर मोहन जी को एक बात सुझी उन्होने विद्रोहीओँ से कहा कि वे अपने गाँव मेँ रहनेवाले भाई को चिठ्ठी लिखना चाहते है । विद्रोही सरदार इसबात पर चिठ्ठी भेजने के लिये तैयार हो गया कि पहले उस चिठ्ठी कि जाँच होगी क्या पता इसमे शत्रृओँ को हमारे बारे मेँ जानकारी दियेजाने की कोशिश किया जाय । विद्रोहीओँ के सरदार ने फकिरमोहन जी से कहा कि वे पान के शौकिन है अतः गाँव से पान व सुपारी भी मंगवा लिजिये । फकिरमोहन जी ने जो चिठ्ठी लिखी थी वो इसप्रकार है :-
[[ "ଭୋଳାନାଥ ଖମାରୀଆ ଜାଣିବୁ, ମହାରାଣୀ ଭୀକ୍ଟୋରିଆଙ୍କ ପୁତ୍ରଙ୍କ ସକାଶେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଜରୁରୀ, ଅତିଶୀଘ୍ର ଶହେ ପାନ ଦୁଇଶହ ଗୁଆ ପଠାଇବୁ, ଉତ୍ତର ପଟୁ ମାହାରା କରି ଆଖିବାଡି ରେ ପାଣି ବୁହାଇବୁ, ନହେଲେ ଆଖୁବାଡି ବିନାଶ ଯିବ ଜାଣିବୁ
BHOLANATH KHAMARIYA JANIBU MAHARANI VICTORIYA NKA PUTRA NKA SAKAASHE ATYANTA JARURI
ATISIGHRA SAHE PAAN DUI SAHA GUAA PATHAAIBU
UTTARA PATU MAHARA KARI PANI BUHAIBU NAHELE AKHUBADI BINASH JIBA JANIBU]]

हिँदी मेँ इसका भाषान्तर इसप्रकार है :-

भोलानाथ खमारिया समझियेगा
रानी विक्टोरिया कि पुत्र के लिये अत्यन्त जरुरी
100 पान के पत्ते व 200 सुपारी जल्दी भेजो
उत्तरी दिशा से गन्ने के खेतोँ मेँ पानी बहादेना नहीँ तो पुरा का पुरा खेत नष्ट हो जाएगी !!!

गाँव मेँ चिठ्ठी पहचाँ उस चिठ्ठी को पढ़कर सब हैरान !
भोलानाथ खमारिया ,रानी विक्टोरिया का पुत्र ,गन्ने का खेत और पान सुपारी कुछ समझनहीँ पाये गाँववाले ।
ये चिठ्ठी फकीरमोहन जी के मित्र मधुसुदन दास जी के पास पहचाँ और उन्होने इसका गृढ़ अर्थ कुछ ऐसा निकाला

विद्रोहीओँ का सरदार खुदको महारानी विक्टोरिया का पुत्र मानता था जाहिर हे उसके दिल मेँ देशप्रेम कम राजनवर लुटने कि चाहत ज्यादा थी
पान =का अर्थ यहाँ सैनिक,
गुआ या सुपारी माने गोलाबारुद ,गन्ने का खेत का मतलब राजनवर और उत्तरी दिशा से हमला करने को कहागया है ।

मधुबाबु के तारन निकालेजाने पर वैसे ही किया गया व राजनवर लुटने से बचगया ।

फकिरमोहनजी ने इसबात का जिक्र अपने जीवनी या अटोवायोग्राफी मेँ की है ।
वे 13 जन्मवरी मकर संक्रान्ति मेँ जन्मे थे व 14 जुन 1929 को रजसंक्रान्ति पर उनका निधन हो गया था...........

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