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शुक्रवार, 6 मई 2016

रसोगुला ओडिशा का है

दुनिया को Odishan ने #रसगोला चखाया....  वो भी अलग अलग प्रकार ,रंग के और एक अकेले कोलकत्ता मे सिर्फ #सफेद_कलर् का रसगुला मिलता है  वहीँ #Odisha मे हर गाँव कसवे मे अलग अलग वेराइटिज् के रसगुला दिखजाएगेँ !!   19वीँ सदी के शुरुवात मे  दीन हीन Odisha छोड़ कुछ कर्मवादी लोग Bengal चलेगये थे ये लोग वहाँ उनकी सवारी ढ़ोने लगे रसौइये बने माली बने और वहीँ के हो कर रहगये माइग्रेटेड ओड़िओँने रसगोला का रेसेपी बेँगोलीओँ को दिया था  ** श्रीचैतन्य महाप्रभु पुरी से बंग लौटते समय अपने संग कई ओड़िआओँ को साथ ले गये थे । यही Odishan आगे चलकर बेँगल मे ठाकुर व ठाकुरदा नामसे जाने गये ...तथा सम्भ्रान्त बेँगली परिवारोँ मे रसौया का काम करने लगे और रसगोला रेसिपी के बेँगलीओँ मे बाँटा  #बंगाली कहते है 15वीँ सदी मे #पुर्तगालीओँ ने भारतीयोँ को #छेना या #Cheese बनाना सिखाया था....  जबकी #मध्यकाल के प्रसिद्ध नवरत्नोँ मे से एक #अमरसिँह ने #अमरकोष मे छेना को #अमिक्षा बताया है !  इसी पुरातन शब्द से ओड़िआ भाषामे अमिशा शब्द प्रचलन मे आया  !  सालेपुर तथा पोहल मे मिलने वाले रसगोला इषत् लाल रंग के होते है ।  1868 मे इस लाल रसगोला के जटिल पद्धत्ति का सरलीकरण करते हुए  कोलकत्ता के नविन दास  ने सफेद रसगोला बनाया था  उन्होने छेना के बदले सुजि मिलाईके  उसे सफेद बनाया जो आगे   चलकर उनके पुत्र के सी दास ने दुनिया भर मे फैलाया !  आज भी यह लाल रसगोला Odisha के अलावा कहीँ नहीँ मिलता  ज्यादे महनत् कौन करे   जब सफेद से ही मुँह मीठा हो जाता हो ।  गाय को माता कहकर पूजने वाले #भारतीय यदि छास ,दही माखन् बना लेते थे तो उन्हे छेना बनाना न आता हो यह तो असम्भव लग रहा है ।  Odisha मे छेना से बने अन्य प्रसिद्ध मिठाईआँ....  #छेनापोड़  यह मिठाई छेना ,चिनि ,सुजि ,काजु व किसमिस् से बनता है इसे नयागड़ जिल्ला मे 12वीँ सदी मे प्रथमवार बनाया गया था ।  **विद्याधर साहु नामसे एक  #गुड़िआ [गुड़ से मिठाई बनानेवाले Odia हलवाई] ने एक दिन रात को छेना मे गुड़ मिलाके उसे सारी रात चुले पर बिठा दिया था...  किसी ने उस चुले पर आग जलादिया  जिससे वह छेनापोड़ बनगया था  #छेनागजा  यह मिठाई छेना ,चिनि तथा सुजि से बनता है Bhubneswer निकटस्थ पोहल गाँव मे इसके अलग अलग वेराइटिज् मिल जाता है ।  #रसावळी  छेना दुग्ध चिनि से बनता है ! सर्व प्रथम केन्द्रपड़ा जिल्ला  मे बना था इसे बलदेवजीउ मंदिरमे भोग लगाया जाता है । श्री जगन्नाथ मंदिरमे लगनेवाले 56 भोग मे रसावळी अन्यतम है ।  #रसवरा :- पश्चिम ओड़िशा का खास मिठाई !  इसे रसगोला का बड़ा भाई मानाजाता है । चावल ,सुजी या छेना के बदले इसे केवल मुंग् के दाल को गोला बनाके चिनि के गर्म रस् मे डुबो कर इसे बनाया जाता है ।  ओड़िशा मे इनके अलवा भी कई  और मिठाई बनाया जाता है  जैसे रसकदम् राविडी रसफेणी रसमलेई आदि  ओड़िशा के ऐसे कई  कई गाँव है जिनका नाम रस शब्द से शुरु होता है  चाहेँ वो बलांगीर का रसतुला गाँव हो या ढ़ेँकानाल का रसोल  इन गाँव को आज भी गुडिआ हलवाईओँ का गाँव कहाजाता है  और   ये सभी गाँव उस क्षेत्र मे रसगोला के लिए फैमस भी है ही  ओड़िशा के पुरी ,भूवनेश्वर , कटक , पाहाळ , सालेपुर , गोविन्दपुर , नीलगीरी का रसगोला एक दुसरे से अलग और स्वाद भी अनन्य होता है ।   यहाँ कई काव्य भी लिखे गये है जिनमे रस शब्द पाया जाता है रसकल्होळ रस विनोदिनी  आदि आदि  वहीँ रसगोला विक्री मे भी पाहाळ तथा सालेपुर काफी आगे है जबकी कोलकत्ता तिसरे स्थान पर है ।    पिछले साल रसगोला विवाद के समय कई लोगोँ ने Odishan पर कटाक्ष किया था  वीर सांघवी ने कहा  अबतक ओड़िआ लोग निँद मे सोए थे क्या ? जो अब जागे हो ???  सांघवीजी को भाई भक्त त्रिपाठी ने फेसबुक तथा प्रमेय मे आर्टिकल् छाप कर तब जोरदार तमाचा जड़ा था  मेरा यह लेख उनके उसी लेख से प्रेरित है  हिन्दी मे एक कहावत् है  जब जागो तभी सवेरा  कॉपी मार मार के नाम कमाने वाले आँख उठाके देखेँ Odishan जाग् रहे है