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सोमवार, 29 जून 2015

मयुरभंज और बारिपदा के बारे मेँ सम्यक रोचक तथ्य

अगर आप ओड़िशा घुमने आते हो और #मयुरभञ्ज #Mayurbhanj कि सैर नही किये तो कहना पड़ेगा आपने ओड़िशा देखा ही नहीँ !
ओड़िशा का सबसे बड़ा जिल्ला #मयुरभंज पर भंज व केशरी राज परिवार का बर्चस्व रहा है ।
मयुरभंज कि मुख्यालय बारिपदा या वारिपदा मेँ स्थित है । ओड़िशा मे सबसे पहले रेलपथ से जुड़नेवाला सहर है वारिपदा ! उनदिनोँ भंजराज कृष्णचंद्रदेव ने वारिपदा को नेरोगेज रेलवे लेन के तहत हावड़ा चेन्नई रेलवे से संयुक्त करवाया था । अंग्रेजीराज मेँ ओड़िशा का पहला एयरपोर्ट भी मयुरभंज जिल्ला के रासगोविँदपुर (वारिपदा से 60 ୬୦ Km.) । दुसरे विश्वयुद्ध के समय इस जंगी एयारपोर्ट का निर्माण अंग्रेजोँ ने करवाया था यहाँ 2 किलोमिटर लम्बा टैक अफ ट्रेक है ।
मयुरभंज छउ लोक नृत्य के लिये विश्व प्रसिद्ध है । इस जिल्ला मेँ चैत्र माह पर पाइकवीरोँ द्वारा दक्षता पदर्शन हेतु जगह जगह छउनृत्यप्रतियोगिताओँ का आयोजन कियाजाता है ।

वहीँ श्रीजगन्नाथ रथयात्रा भी यहाँ के प्रमुख तौहारोँ मेँ से एक हे । ओड़िशा मेँ इसे द्वितीय श्रीक्षेत्र कहते ,यहाँ पुरीरथयात्रा के एक दिन बाद रथयात्रा होता है । वारिपदा के निकट सिमलिपाल टाइगर रिर्जव सैलानीओँ को अपनीऔर आकर्षित करता है । 1956 में इसे टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट मेँ आधिकारिक रुप से सामिल किया गया था । के लिए किया गया था। बारीपादा से यह 60 किमी. दूर स्थित हे ,यह पार्क 2277.07 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैला हुआ है । प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण इस वन्य अभ्यारण्य मे वाघ के अलावा हाथी हिरन व अन्य वन्यजीव पायेजाते हे । बारिपदा से 150 किमी. दूर स्थित खिचिंग नगर अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। एक समय मे यह स्थान भंज शासकों की राजधानी थी। देवी चामुंडा को समर्पित यहां का मंदिर प्रमुख और लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है । देवी चामुंडा का यह मंदिर किचकेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हे । यह मंदिर पत्थर की अनोखी मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। चौलाकुंज और बिराटगढ़ यहां के अन्य चर्चित स्थल हैं। चौलाकुंज विशाल स्तंभों और बिराटगढ़ संग्रहालय के लिए जाना जाता है।

सोमवार, 15 जून 2015

रज पर्व

ओड़िशा मेँ रज पर्व का खास महत्व होता हे ,यह पर्व चार दिन के लिये मनाया जाता हे

[[पहिलि रज
रजसक्रान्ति/मिथुन सक्रान्ति
शेष रज
वसुमति स्नान]]

चार दिन तक चलने वाली इस पर्व के प्रथम दिन को पहिलि रज
द्वितीय दिन को रज संक्रान्ति
तथा अंतिम दिन को भूमिदाह ,भूमि दहन व शेष रज भी कहाजाता है ।
पर्व के अंतिम व चौथे दिन को वसुमती स्नान दिवस कहाजाता है । इस पर्व का आरम्भ होना खेती कि शुरवाद करने हेतु सुचित करता है । प्रायः इस पर्व के दौरान मॉनसुन कि बरसात हो जाता है और कृषक लोग खेतोँ मेँ धान कि बीज वपन करते है ।
। प्राचिनकाल मेँ रज पर्व कब कैसे प्रारंभ हुआ इसका सटिक विवरण उपलब्ध नही , परंतु इसे सम्भवतः स्थानीय लोगोँ ने पृथ्वी माता तथा नारीऔँ की गौरव बढ़ाने हेतु मनाना शुरुकिया था । रज पर्व के इन चार दिनोँ मेँ ओड़िशा प्रान्त के लोग न तो धरती पर खुदाई करते न चपल पहन कर चला करते है । नारीआँ विभिन्न प्रकार की प्रादेशिक पकवान व मिठाई बनाकर घर परिवार को खिलाती पड़ोशीओँ मेँ बाँटती ।
तिन दिन तक इस क्षेत्र के नारीआँ न तो मसाला बाटती न सब्जी काटती है ये सब तीन दिन के लिये पुरुषोँ को करना होता हे ।
तिन दिन तक इस प्रान्त के नारीआँ वृक्ष शाखाओँ मेँ झुला बाँधकर झुला झुलती पायीजाती है इसे प्रान्तिय भाषा मेँ दोळी कहाजाता है ।

वसुमती स्नान रजपर्व का अंतिम दिन है ।
इस दिन धरतीमाता के साथ साथ महालक्ष्मी की भी पूजा कियाजाता है । रजस्वला नारी जैसे ऋतु स्नान पश्चात् पवित्र होति है ठिक उसी प्रकार वर्षाजल द्वारा पृथ्वी माता का ऋतुस्नान मनसुन के आने से संपन्न होता हे । पुरातन काल मेँ इस क्षेत्र के लोग मानते थे कि ऋतुस्नान बाद अब धरती माँ कृषि सृजन व वीज धारण हेतु उपयुक्त हो जाती हे ।

इस पर्व मेँ उत्कल भुखंड के नारीआँ झुला झुलते समय कई तरह कि गीत गाया करती है ।
ये गीत आज स्थानीय लोकगीतोँ मेँ काफी लोकप्रिय है ।
उत्कलीय नारी इन गीतोँ मेँ अपने दिलोँ मेँ दफ्न उन दुःख दर्द व आकांक्षाओँ को वयाँ करती हुई सामाजिक सुधार कि उम्मिद रखती है । कोई कोई गाने मजेदार भी होते है ये नंनन्द भैजाई व देवर भाबी आदि मधुर संपर्क रखनेवाले लोग आपस मेँ दोहराते हुए सामाजिक बंधनोँ को और सुदृढ़ बनाते ।

रज पर्व मेँ ज्यादातर पुरुष लोग क्रिकेट कबड्डी तास आदि खेलोँ मेँ छुट्टीओँ का आनंद लेते है । वहीँ पुरुषोँ को चुला चौका मेँ ये 4 दिन नारीओँ कि मदद करना होता हे । इसके पिछे उद्देश्य होता है पुरुषोँ को बताना कि नारीआँ घर चलाने के लिये कितना महनत करती हे नारी सम्मान बढ़ाने हेतु इसतरह की रीति रिवाज जोड़दिया गया हे ।