स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर जी कि कविता संगफल का लिपान्तरण ओडिआ तथा अनुवाद रुप....
●लिपान्तरण●
स्वर्ण वर्ण कनिअर पुष्प मनोरम ।
किन्तु तार फळ बिष भिषण बिषम ।।
शिब पाशे रहिबारु संगर कि फळ ।
गउरी गउर कान्ति भुजंग गरळ ।।
सेरुपे धुस्तूर फुल जाह्नबीबरण ।
फळ करि अछि सर्प बिष आकर्षण ।।
एहि रुपे केते लोक शास्त्र संग गुण ।
घेनि होइथान्ति हित भाषणे निपुण ।।
किन्तु कर्मे करिथान्ति अत्यन्त अहित ।
बद्ध होइ नीच दुष्ट प्रबृत्ति सहित ।।
◆ओडिआ लिपि मे....◆
ସ୍ବର୍ଣ୍ଣ ବର୍ଣ୍ଣ କନିଅର ପୁଷ୍ପ ମନୋରମ ।
କିନ୍ତୁ ତାର ଫଳ ବିଷ ଭିଷଣ ବିଷମ ।।
ଶିବ ପାଶେ ରହିବାରୁ ସଙ୍ଗର କି ଫଳ ।
ଗଉରୀ ଗଉର କାନ୍ତି ଭୁଜଙ୍ଗ ଗରଳ ।।
ସେରୂପେ ଧୁସ୍ତୂର ଫୁଲ ଜାହ୍ନବୀବରଣ ।
ଫଳ କରି ଅଛି ସର୍ପ ବିଷ ଆକର୍ଷଣ ।।
ଏହିରୂପେ କେତେ ଲୋକ ଶାସ୍ତ୍ର ସଙ୍ଗ ଗୁଣ ।
ଘେନି ହୋଇଥାନ୍ତି ହିତ ଭାଷଣେ ନିପୁଣ ।।
କିନ୍ତୁ କର୍ମେ କରିଥାନ୍ତି ଅତ୍ଯନ୍ତ ଅହିତ ।
ବଦ୍ଧ ହୋଇ ନୀଚ ଦୁଷ୍ଟ ପ୍ରବୃତ୍ତି ସହିତ ।।
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★अनुवाद★
स्वर्ण वर्ण कर्णिकार पुष्प मनोरम ।
किन्तु इसका फल विष भिषण विषम ।।
शिव के पास रहने से संग का देखो फल ।
गउरी गउर कान्ति भूजंग गरल ।।
उसीतरह धुस्तूर पुष्प जाह्नवीवरण ।
फल कर रहा सर्प विष आकर्षण ।।
इसी भांति कुछ लोग शास्त्र संग गुण ।
पाकर होते हित भाषणे निपुण ।।
किन्तु कर्म करचुके च्युंकि अत्यन्त अहित ।
बद्ध हो नीच दुष्ट प्रवृत्ति सहित.... ।।
गंगाधर मेहर जी कि रचना....
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#सम्बलपुर के #बरपाली मे कवि गंगाधर मेहरजी का जन्म एक #तन्ती यानी #जुलाह परिवार मे हुआ था....
उन्होंने अपने जीवनकाल मे #ओडिआ #साहित्य को अपना जो अवदान दिया वह सदा हमारे लिए
अमूल्य धरोहर
बना रहेगा....
जातिवादीओं ने भारतवर्ष मे जुलाह...
तन्ती लोगों को बुद्धिहीन बताकरके एक समय खुब बदनाम किया था...
उनपर प्रचलित कई लोककथाएं तथा लोकोक्ति इसबात को साबित भी करता है...
इसलिए उत्तरभारतमे ज्यादातर जुलाह,
मुल्लों के संस्पर्श मे आकै कालान्तर मे मुस्लिम बनगये ओडिशा मे कपडा बनानेवाली तन्ती आज भी हिन्दु ही है....
क्यों ??
च्युंकि गंगाधर मेहेर जैसे महान आत्माओं ने ऐसा होने नहीं दिया था ....
इस कविता मे यही संगफल कि बात कवि कहगये है