नमस्ते प्रभु जगन्नाथ ।
अनाथ लोगों के नाथ ।।
नमस्ते प्रभु वासुदेव ।
भक्त जनों के बंधु तव ।।
नमस्ते प्रभु हृषिकेश ।
भक्तजनों के विश्वास ।।
नमस्ते प्रभु विश्वरुपी ।
सकल हृदे हो तुम ही ।।
तुम ही सृष्ठि स्थिति लय करते ।
पुनः भव सब संहारते ।।
अशेष कोटि वसुन्धरा ।
तुम्हारे गर्भ मे हे भरा ।।
चौदह ब्रह्माण्ड है बना ।
ये सर्व तुम्हारी रचना ।।
तुम रह्मा रुद्र विष्णु तुम ही ।
तुम बिनु अन्य गति नाही ।।
सृष्टि तुम्हारी क्रीडागृह ।
सर्वपिता होकर भी निर्मोह ।।
तुम्हारा श्वास है मरुत ।
देव हुए है तहुँ जात ।।
तुम ही हो अग्नी देव इन्द्र ।
नयनुँ तव सूर्य चन्द्र जात ।।
भूजा से अनन्त मारुति ।
कण्ठ से जन्मी सरस्वती ।।
सदा चंचल निद्रा नाही ।
यह रुपे शून्ये होते हो तुम्ही ।।
अशेष तुम्हारी महिमा ।
कोई न जानता गुणसीमा ।।
तेरे नाम करता रहे जो लय ।
करोड़ों जन्मों का पाप हो क्षय ।।
तुम्हारा नाम ले जो मिल जाय सिद्धि ।
दूर हो जाते रोग शोक आदि ।।
आरत भंजन तुम्हारा वह बाना ।
आतंग(विपत्ति) काले वज्र सेह्ना (सन्नाह,कवच) ।।
होए हो दश अवतार ।
उतारे धरती के भार ।।
दुष्ट निवारि संत पालते हो।
तुम नाथ परम दयालु ।।
तुम हो दरिद्रों के धन ।
तुमरे चरणों मे रहे मेरा मन ।।
सती युवतियों के मनमें ।
उनके पति होते हे जैसे ।।
उसी भांति मेरा यह मन ।
तुम्हारे चरणों मे रहे सदा भगवन ।।
कहे दास जगन्नाथ ।
कमल चरणों मे आश..।।
द्रष्टव्य :- प्रस्तुत भक्ति रचना "ନମସ୍ତେ ପ୍ରଭୂ ଜଗନ୍ନାଥ" मूलतः ओडिआ भाषा मे अतिवडी जगन्नाथ दासजी ने लिखा था ।
मैने मात्र दैव प्रेरणा से इसका हिन्दी अनुवाद किया है....
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