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मंगलवार, 16 अगस्त 2016

बक्सी जगबंधु और 1817 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कि कहानी

जगबंधु बिद्याधर महापात्र भ्रमरवर राय
संक्षेप मे "बक्सि जगबंधु" !
लोग स्नेह तथा गौरवभाव से पाइक बक्सी भी कहा करते थे ।
19वीँ सदी तक भारतके लगभग ज्यादातर हिस्सोँ पर अंग्रेजोँ का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभुत्व स्थापित हो गया था !
1803 मेँ अंग्रेजोँ ने कटक के बारबाटी दूर्ग को हमला करके जीत लिया !
महामंत्री जयीराजगुरु के नेतृत्व मे
बक्सी जगबंधु और उनके साथीओँ ने 1803 से 1805 तक गोरिला वार और अन्ततः 1805 मे आमने सामने कि लडाई कि थी जिसमे
जयीराजगुरु को धर लिया गया ।
ब्राह्मणकुल मे जन्मेँ
अंग्रेजोँ के हातोँ फाँसी पानेवाले ये प्रथम शहीद है ।
खैर अंग्रेजोँ से आमनेसामने के लढ़ाई मे हारने के बाद बक्सी ने महशुस किया कि
अपने भाईओँ मे सर्व प्रथम जातिवाद का जहर खत्म करना होगा
वे अपने पैतृक भूमि ररगं लौट आए
और लोगोँ को संगठित करने लगे ।
मोगल व मराठीराज से प्रभावित हो अलगथलग पड़चुकि पाइक जाति को एक करने के लिये उन्होने अपना जीवन नौछावर करदिया !
ये काम इतना सहज न था !
गरीब शोषित लज्जित जाति को उसके गौरवमय अतीत कि याद दिलाना तथा एक उज्वल भविष्य गठन हेतु संकल्पबद्ध करवाना एक व्यक्ति के लिये अत्यन्त कष्टकर व्यापार है ।
इसबीच 1810 मे अंग्रेजोँ ने राजासे मिले करमुक्त भूमिओँ पर टैक्स लगाने शुरुकरदिए ।
और 1811 मे सूर्यास्त आइन के बलपर उत्कलीय जमिदारोँ से जमिदारी छीन कै बंगाली गोरचटोँ को दे दिया ।
ये घटना आग मे घी डालने जैसा था ।
पाइक खण्डायत जिन्हे करमुक्त भूमि मिले हुए थे
वो इस अन्याय के विरुध उठ खड़े हुए
और इस तरह से भारत के प्रथम जन आंदोलन कि घटना
ओड़िशा के खोर्दा मे घटित हुआ !
पहले पहल जमिदार राजाओँ द्वारा
कुछ एक
छिटपुट विद्रोह के बाद
बक्सी जगबंधु के नेतृत्व मे
1817 सालमे एक बड़ा विद्रोह हुआ जिससे बंगाल मे चैन कि निद्रा मे सोये अंग्रेजोँ की निँद हाराम हो गये ।
****
इस साल पाइक विद्रोह को 200 साल पुरे हुए है ।
च्युँकि फिलहाल एक राष्ट्रवादी सरकार केन्द्र मे शासक बना है
मेरा व्यक्तिगत विचार है केन्द्र सरकार Odia paika कोँ के सम्मान मे Paika रेजिमेँट बनाए
यही उनके लिए सच्ची श्रद्धाजंली होगी !!
कौन थे बक्सी जगबंधु ?
बक्सी जगबंधु कि 1804 से पूर्व जीवनी अबतक ठिक से पता नहीँ चल सका है ।
कुछ ऐतिहासिक उनके जीवनकाल को 1780 से 1829 तक सीमित बताते है ।
उन्हे उनके पूर्वपुरुषोँ से वंशानुक्रमे बक्सी उपाधि मिला था ।
खोर्दा राजा के सेनापति दायित्व वहन करते हुए
उन्हे राजा के बाद राज्य मे सबसे शक्तिशाली व्यक्तित्व के रुप मे जाना जाता था ।
उनके पूर्वजोँ को खोर्धा राजा से ररङ्ग किल्ला का
जमिदारी मिला था
वहीँ
उनके परिवार का सेरगड़ तथा बड़म्बा राजपरिवार से वैवाहिक संबन्ध बताता है कि
वे यथा संभव क्षत्रिय खण्डायत बंशज रहे होगेँ ।
बक्सी जगबन्धु बिद्याधर भोइवंश के प्रथमराजा गोविँद विद्याधर के मंत्री दनेइ विद्याधर के अष्टम वंशधर बताए जाते है ।
अंग्रेजी ऐतिहासिक ष्टार्लिगं ने अपने ओड़िशा इतिहास नामक पुस्तक
मे उन्हे रुपवान तेजस्वी वाकपटु शक्तिशाली पुरुष बताया है ।
~घटनाक्रम~
1817 मे अंग्रेजोँ ने घुमुसर क्षेत्र के राजा धनजंय भंज को
एक हत्या के मामले मे फसाकर
गिरफ्तार करलिया !
इसके प्रतिवाद मे 300/400 कंध
जनजाति के योद्धाओँ ने
वाणपुर मे घुसकर सरकारी दफ्तरोँ को जलाया
सरकारी खजाने लुट लिए ।
इन कंध आदिवासीओँ के साथ खोर्द्दा पाइक योद्धा मिलगये
और अंग्रेजोँ के खिलाफ विद्रोह घोषणा करदिया गया ।
। स्वतंत्रता सेनानीओँ के प्रथम शिकार बने
अंग्रेजोँ के शुभचिँतक
चरण पट्टनायक !
पाइकोँ के साथ अंग्रेजोँ का
रगंपड़ा बालकाटि पिपिलि आदि जगहोँ मे संघर्ष छिड़ गया ।
इन क्षेत्रोँ मे अंग्रेजोँ को मुँह कि खानी पड़ी !
पाइक वीर पुरी कि ओर अग्रसर हुए
परंतु यहाँ वो चुक गये
आधुनिक अश्त्रशत्रोँ के साथ पहले से तैयार अंग्रेजोँ के आगे वो हारने लगे ।
अंग्रेजोँ ने पुरी राजा मुकुन्द देव को बंदी बना लिया
उन्हे कटक भेजदिया !
1817 एप्रेल 12 तारिख मे सामरिक कानुन लागु हुआ !
मेजर सार जी मार्टिनडेल नये कमिशनर नियुक्त हुए ।
उसी साल अक्टोवर तक विद्रोह दमन हो गया
परंतु अंग्रेजोँ को चैन न था ।
च्युँकि जगबंधु बिद्याधर ,कृष्णचंद्र भ्रमरवर ,दलबेहेरा तथा उनके अनुचरोँ ने
जंगलोँ मे डेरा बना लिया
और बीच बीच मे सरकारी माल मकान पर हमले होता रहा ।
अंग्रेजोँ ने जगबंधु के परिवारवालोँ को बंदी बनाया
हर मुमकीन कोशिश कि
लेकिन उन्हे तथा उनके मित्रोँ को पकड़ पाने मे नाकामियाब हुए ।
लेकिन धीरे धीरे स्थानीय लोग
मूलतः राजा तथा पूर्व जमिदारोँ ने उनको साहायता देने बंद करदिया
उधर कुछ एक विद्रोहीओँ ने
अंग्रेजोँ द्वारा माफी मिलने तथा पेनसन के एवज मे आत्मसमर्पण कर लिया ।
अन्ततः 27 मई 1825 मे बिमार हालत मे
बक्सी जगबंधु को उनके विद्रोही मित्रोँ द्वारा कटक लाया गया
उन्हे
कटक बक्सी वजार मे अंग्रेजोँ ने गृहवंदी बनाए रखा
और
24 जनवरी 1829
को उनका जीवनदीप बुझगया ।
कुछ डरपोक लोगोँ के लिए
जीता हुआ बाजी हारगये ये योद्धा
हाँ मैँ कहुगाँ अंग्रेज नहीँ ये भीरु लोगोँ ने ही उनको घुट घुट कर मरजाने को मजबुर करदिया
जिनके लिए वो मरना चाहते थे
वह जनता चुप बैठ गयी ।

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