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अनंत_वासुदेव_मंदिर भूवनेश्वर कि सर्वप्रथम पुरातन विष्णु मंदिर है ।पुरातन काल मे भूवनेश्वर को शैव क्षेत्र के रुप मे जानाजाता था यहाँ कई प...

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

चोडगंगदेव और जनसृतिआँ.....भाग 1

#कलिगंराज
अनन्तबर्मा चोडगंग देव ने
1078 से 1147....
सत्तर साल तक आगंगा गोदावरी पर राज किया था ......
उनके पिता
देवेन्द्र बर्मा राजराजदेव

दक्षिणी #कलिगं राज्य के राजा थे जो केशरी राजाओं के उत्कल के पश्चिमी भाग मे था ।

उनकी माता #चोलराज #कुलतुगं राजेन्द्र कि पुत्री तथा पिता #पूर्वगंगवंशी होने के कारण उनका नाम #चोलगंग रखागया था ये नाम आज बदलकर #चोडगंग हुआ है ....... मात्र 2 (1078) वर्ष कि आयु में उनका राज्याभिषेक #कलिगंनगर आधुनिक #मूखलिगंम् सहर में संपन्न हुआ ......

1135 तक यही #कलिगंनगर उनके साम्राज्य कि राजधानी बनी रही ओर उसी साल उन्होने अपना राजधानी #कटकनगर को बनाया ......तबसे 1950 तक #कटक को राजधानी का दर्जा मिलता रहा........

चोडगंग के बारे मे अनेकों जनसृति गढे गये.....

पुरी #श्रीक्षेत्र मे प्रचलित #मादलापांजी
ग्रन्थ मे उनके बारे मे जो कहगया है वह उनकी सम्मान हानी करता है...

कुछ ऐतिहासिकों ने मादला पांजी को 15वीं सदी परवर्त्ती ग्रन्थ माना हे .....

मादलापांजी मे चोडगंग को
#चोरगंग कहागया है
ये भी कि उनकी माता
एक #दक्षिणभारतीय विधवा
व (जारज) पिता #गोकर्ण थे.....

बालक चोडगंग एक दिन अपने संगी साथीओं के साथ #राजामन्त्री खेल रहे थे कि #केशरीराजवंश शासित #उत्कल राज्य सेनापति #वासुदेव_वाहिनीपति ने उन्हें देखा वो चोडगंग से प्रभावित हुए ।
#उत्कल सेनापति उनके गुरू हुए उन्होने चोडगंग को समर्थ योद्धा बनाया ।
इसबीच किसी बातपर #केशरी राजा
से सेनापति बासुदेव वाहिनीपति का झगडा हो गया .....

वासुदेवजी का दुःख शिष्य चोडगंग से देखा न गया ....उसने तय कर लिया ....उत्कलराज को दंड दैके रहेगा.....

वो यही सोचते हुए एक चुडैल #नितेई #धोवणी से मिला और उससे चोडगंग को चमत्कारी शक्ति प्राप्त हुए ।
इससे वह शक्तिशाली अपराजय उत्कलराज को परास्त करके स्वयं
उत्कल #राजसिंहासन आरोहण पूर्वक शासन करनेलगा ।
यथा संभव
यह जनसृति #सूर्यवंशी राजाओं के राजत्वकाल(15वीं सदी) मे गढागया होगा.....

चोडगंग अनन्तवर्मन के बारे में 2 जनसृति और है....

उनके बारे में तेलुगु जनसृति
अगले पोस्ट में.......

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

दळबेहेरा सामन्त माधवचन्द्र राउतराय -1827 तापंगगड संग्राम्

भारत मे ऐसे हजारों स्वतंत्रता सेनानी हुए है जिनके बारे मे  केवल स्थानीय लोग जानते हे ।
ऐसे ही एक जननायक थे
दलवेहेरा सामन्त माधवचन्द्र राउतराय.........
1827 में अंग्रेजोंने खोर्द्दाराज्य के तापंगगड़ पर हमला करदिया .....
मगर
#पाइक योद्धाओं को इस हमले कि पहले से ही खबर हो गयी थी ।
मळिपडा,नारणगड,रामचण्डिगड, रथिपुरगड,छत्रमागड व गडसानपुट आदि क्षेत्रों के योद्धाओं ने मिलकर उनका सामना किया ।
तापंग दलवेहेरा के साथ भागीरथी दळेइ,प्रताप सिंह,बैरीगंजन,गोबर्धन दळेइ व रणसिंह योद्धा आगे रहकर पाइकों का प्रतिनिधित्व कररहे थे ।
शुरुआती लढाई मे अंग्रेज हारने लगे लेकिन जैसेतैसे उन्हे कांजिआगड में छाँवनी लगाने मे सफलता मिलगयी .....
देवी हस्तेश्वरी कि पूजा के बाद पाइक योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेडदिया जो 7 दिनों तक चला । युद्ध के
चौथे दिन भयानक युद्ध हुआ....
दलवेहेरा माधर चन्द्र के नेतृत्व मे पाइक ज्यादा आक्रामक हो उठे इससे हजारों अंग्रेज सैनिक मरे ओर उनके कैप्टन धारकोर्ट वहाँ से जान बचाकर भाग निकले ।

धाराक्रोट ने अब दिमाग का खेल खेला ......
अंग्रेज रस्ते मे कुछ सोने के सिक्के डाल दिए ओर छिपगये....
अंग्रेजों का पिछा करता हुआ
दधीमाछगाडिआ गाँव का एक पाइक सैनिक मधुसुदन पट्टनायक ने रास्तों मे सोना गिरा देखा और वो सब उठाने लगा .....
अंग्रेज जानगये वो लोभी है यानी काम का बंदा !
उसे और लोभ दियागया
और उसने सोने के लालच मे दुशमनों से हाथ मिलालिया ।

अब अंग्रेज भारी पडने लगे लेकिन वो तब भी किसी भी तरह जीत नहीं पा रहे थे .....

सातवें दिन देशद्रोही मधुसुदन पट्टनायक ने अंग्रेजों को हातीआ पर्वत के नीचे रखे पाइकों का अश्त्रागार दिखादिया और अंग्रेजों ने उसमें आग लगा दिया .....
अब पाइक वीरों के पास गोरिला युद्ध के सिबा कोइ रस्ता न था ।
वो सब छिपकर अंग्रेजों के खिलाफ 2 वर्षों तक लढते रहे ।
1829 में एक सुबह जंगल में एक केवट परिवार कि बृद्धा रोती हुई जा रही थी .....भेष बदले हुए दलवेहेरा माधवचन्द्र ने जब उससे रोने का कारण पुछा उसने अपने गरीबी व कुटुम्बजनों का निराहार
होना आदि प्रसंग कह सुनाया .और कहा कि वो जंगल मे मरने आई है च्युंकि वो अपने बच्चों को खाना तक दे नहीं पा रही....

दलवेहेरा माधवचन्द्र ने उन्हे अंग्रेजों से मिलादेने को कहा .....
और ये भी कि उसे बहुत सारे पैसा मिलेगा .....
अंग्रेज थाने मे जब दलवेहेरा ने अपना परिचय दिया अंग्रेज अफसर दंग रहगये .....वह औरत जो कुछ घंटो पूर्व अन्नदाने के लिए रो रही थी खुदको कोशने लगी कि उसने कितना बडा गलती करदिया .......
दलवेहेरा
माधवचन्द्र राउतरात के बारे मे एक अंग्रेज अफसर ने अपने अटोवायोग्राफी मे लिखा है

“Dalabehera Madhaba Chandra was not only a fighter for freedom, but also a great friend of the poor. No one hadever been turned away from his door empty handed. He wasloved and respected every where for his greatness of heart.”

(दलवेहेरा एक उपाधी है जो पाइक सर्दारों को मिलाकरता था ....)

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

भारत से बौद्ध धर्म कैसे लुप्त हुआ...

दशवीं सदीमे समुचे भारत का चक्कर लगाते हुए श्री शंकराचार्य श्रीक्षेत्र पुरुषोत्तम पहँचते है ।

उन दिनों आज जितना बडा मन्दिर नहीं था आज जहाँ भोगमंडप है वहीं एक बडा मण्डप जरूर हुआ करता था !

शंकरचार्य जी ने देखा हर पंथ सम्प्रदाय के लोग इस मंडप के पास आकरके इक्कठे हो रहे है ओर फिर जगन्नाथ को अपने हिसाब से पूज रहे है .....

कोई शैव बेलपत्र चढा रहा है......तो कोई शाक्त जवा पूष्प .....

उनदिनों पुरी अन्चल केशरी वंश अधीनस्त आया करता था
सो शंकराचार्य
#Jajpur जाजपुर में केशरी राजा से मिले ......

शंकराचार्य जी ने राजा से कहा

एक ईश्वर सो एक पूजाविधी होना चाहिए

केशरी राजा कुछ चिन्तित होते हुए मुनी से आग्रह करने लगे

हे देव ! कृपा करके आप ही कोई मार्ग बतावें मैं तो निरुपाय हुँ......

शंकराचार्य जी ने सभी सम्प्रदायों के बीच उसी भोगमंडप के पास एक तर्कसभा के आयोजन का सुझाव राजा को दिया ।

अपने देश के लोग तर्क वितर्क के मामले में एलियन के बिरादरी को भी हरासकने का दमखम रखते है
...।

सो सब राजी हो गये

एक एक करके सब सम्प्रदाय के अग्रज विद्वान हारकर बाहर हो रहे थे.....जैन,वैष्णव,सौर,गाणपत्य आदि आदि........

अन्त मे सिर्फ बौध व शाक्त धर्म के अनुयायी ही अपराजय रहे गये......

कोई किसी के हरा नहीं पा रहे थे न स्वयं हार मान रहे थे....।

वौधों के पास ऐतिहासिक तथ्य था....
वो जगन्नाथ को भगवन बुद्ध तथा उनके मध्य स्थित ब्रह्म को बुद्धदन्त बतारहे थे....

उधर शाक्तधर्म अनुयायीओं ने श्रीजगन्नाथ को
कामाक्षा काली(आसाम),सुभद्रा जी को भूवनेश्वरी(दुर्गा) तथा बलभद्रजी को मंगलादेवी(उत्कलीय) प्रमाण करदिया.....

दोनों ही पक्ष का तर्क मजबुत था......

केशरी राजा वौध थे रानी शाक्त धर्म प्रेमी
दोनों मे कौन श्रेष्ठ है जाननेे हेतु कौतुहल ओर बढा......

तब श्रेष्ठता जानने को
एक मटके में एक काले नाग को भरवाकै दोनों पक्षों से पुछागया बताओ इस बंद मटके में क्या है .....

बौद्ध सन्यासीओं ने कालानाग बताया
शाक्तधर्म तान्त्रिकों ने उस सांप को सबके अगोचर मे तन्त्र से भस्म करके उस मटके मे भस्म है कहा .....

इससे
शाक्तधर्मावल्भीओं का विजय
हो गया और बौद्धों का हार......

धीरे धीरे बौद्ध भारत में जगह जगह हारते चले गये और अन्ततः भारत से बौद्धधर्म लुप्त हो गया......