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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

भारत से बौद्ध धर्म कैसे लुप्त हुआ...

दशवीं सदीमे समुचे भारत का चक्कर लगाते हुए श्री शंकराचार्य श्रीक्षेत्र पुरुषोत्तम पहँचते है ।

उन दिनों आज जितना बडा मन्दिर नहीं था आज जहाँ भोगमंडप है वहीं एक बडा मण्डप जरूर हुआ करता था !

शंकरचार्य जी ने देखा हर पंथ सम्प्रदाय के लोग इस मंडप के पास आकरके इक्कठे हो रहे है ओर फिर जगन्नाथ को अपने हिसाब से पूज रहे है .....

कोई शैव बेलपत्र चढा रहा है......तो कोई शाक्त जवा पूष्प .....

उनदिनों पुरी अन्चल केशरी वंश अधीनस्त आया करता था
सो शंकराचार्य
#Jajpur जाजपुर में केशरी राजा से मिले ......

शंकराचार्य जी ने राजा से कहा

एक ईश्वर सो एक पूजाविधी होना चाहिए

केशरी राजा कुछ चिन्तित होते हुए मुनी से आग्रह करने लगे

हे देव ! कृपा करके आप ही कोई मार्ग बतावें मैं तो निरुपाय हुँ......

शंकराचार्य जी ने सभी सम्प्रदायों के बीच उसी भोगमंडप के पास एक तर्कसभा के आयोजन का सुझाव राजा को दिया ।

अपने देश के लोग तर्क वितर्क के मामले में एलियन के बिरादरी को भी हरासकने का दमखम रखते है
...।

सो सब राजी हो गये

एक एक करके सब सम्प्रदाय के अग्रज विद्वान हारकर बाहर हो रहे थे.....जैन,वैष्णव,सौर,गाणपत्य आदि आदि........

अन्त मे सिर्फ बौध व शाक्त धर्म के अनुयायी ही अपराजय रहे गये......

कोई किसी के हरा नहीं पा रहे थे न स्वयं हार मान रहे थे....।

वौधों के पास ऐतिहासिक तथ्य था....
वो जगन्नाथ को भगवन बुद्ध तथा उनके मध्य स्थित ब्रह्म को बुद्धदन्त बतारहे थे....

उधर शाक्तधर्म अनुयायीओं ने श्रीजगन्नाथ को
कामाक्षा काली(आसाम),सुभद्रा जी को भूवनेश्वरी(दुर्गा) तथा बलभद्रजी को मंगलादेवी(उत्कलीय) प्रमाण करदिया.....

दोनों ही पक्ष का तर्क मजबुत था......

केशरी राजा वौध थे रानी शाक्त धर्म प्रेमी
दोनों मे कौन श्रेष्ठ है जाननेे हेतु कौतुहल ओर बढा......

तब श्रेष्ठता जानने को
एक मटके में एक काले नाग को भरवाकै दोनों पक्षों से पुछागया बताओ इस बंद मटके में क्या है .....

बौद्ध सन्यासीओं ने कालानाग बताया
शाक्तधर्म तान्त्रिकों ने उस सांप को सबके अगोचर मे तन्त्र से भस्म करके उस मटके मे भस्म है कहा .....

इससे
शाक्तधर्मावल्भीओं का विजय
हो गया और बौद्धों का हार......

धीरे धीरे बौद्ध भारत में जगह जगह हारते चले गये और अन्ततः भारत से बौद्धधर्म लुप्त हो गया......

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