भारत मे ऐसे हजारों स्वतंत्रता सेनानी हुए है जिनके बारे मे केवल स्थानीय लोग जानते हे ।
ऐसे ही एक जननायक थे
दलवेहेरा सामन्त माधवचन्द्र राउतराय.........
1827 में अंग्रेजोंने खोर्द्दाराज्य के तापंगगड़ पर हमला करदिया .....
मगर
#पाइक योद्धाओं को इस हमले कि पहले से ही खबर हो गयी थी ।
मळिपडा,नारणगड,रामचण्डिगड, रथिपुरगड,छत्रमागड व गडसानपुट आदि क्षेत्रों के योद्धाओं ने मिलकर उनका सामना किया ।
तापंग दलवेहेरा के साथ भागीरथी दळेइ,प्रताप सिंह,बैरीगंजन,गोबर्धन दळेइ व रणसिंह योद्धा आगे रहकर पाइकों का प्रतिनिधित्व कररहे थे ।
शुरुआती लढाई मे अंग्रेज हारने लगे लेकिन जैसेतैसे उन्हे कांजिआगड में छाँवनी लगाने मे सफलता मिलगयी .....
देवी हस्तेश्वरी कि पूजा के बाद पाइक योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेडदिया जो 7 दिनों तक चला । युद्ध के
चौथे दिन भयानक युद्ध हुआ....
दलवेहेरा माधर चन्द्र के नेतृत्व मे पाइक ज्यादा आक्रामक हो उठे इससे हजारों अंग्रेज सैनिक मरे ओर उनके कैप्टन धारकोर्ट वहाँ से जान बचाकर भाग निकले ।
धाराक्रोट ने अब दिमाग का खेल खेला ......
अंग्रेज रस्ते मे कुछ सोने के सिक्के डाल दिए ओर छिपगये....
अंग्रेजों का पिछा करता हुआ
दधीमाछगाडिआ गाँव का एक पाइक सैनिक मधुसुदन पट्टनायक ने रास्तों मे सोना गिरा देखा और वो सब उठाने लगा .....
अंग्रेज जानगये वो लोभी है यानी काम का बंदा !
उसे और लोभ दियागया
और उसने सोने के लालच मे दुशमनों से हाथ मिलालिया ।
अब अंग्रेज भारी पडने लगे लेकिन वो तब भी किसी भी तरह जीत नहीं पा रहे थे .....
सातवें दिन देशद्रोही मधुसुदन पट्टनायक ने अंग्रेजों को हातीआ पर्वत के नीचे रखे पाइकों का अश्त्रागार दिखादिया और अंग्रेजों ने उसमें आग लगा दिया .....
अब पाइक वीरों के पास गोरिला युद्ध के सिबा कोइ रस्ता न था ।
वो सब छिपकर अंग्रेजों के खिलाफ 2 वर्षों तक लढते रहे ।
1829 में एक सुबह जंगल में एक केवट परिवार कि बृद्धा रोती हुई जा रही थी .....भेष बदले हुए दलवेहेरा माधवचन्द्र ने जब उससे रोने का कारण पुछा उसने अपने गरीबी व कुटुम्बजनों का निराहार
होना आदि प्रसंग कह सुनाया .और कहा कि वो जंगल मे मरने आई है च्युंकि वो अपने बच्चों को खाना तक दे नहीं पा रही....
दलवेहेरा माधवचन्द्र ने उन्हे अंग्रेजों से मिलादेने को कहा .....
और ये भी कि उसे बहुत सारे पैसा मिलेगा .....
अंग्रेज थाने मे जब दलवेहेरा ने अपना परिचय दिया अंग्रेज अफसर दंग रहगये .....वह औरत जो कुछ घंटो पूर्व अन्नदाने के लिए रो रही थी खुदको कोशने लगी कि उसने कितना बडा गलती करदिया .......
दलवेहेरा
माधवचन्द्र राउतरात के बारे मे एक अंग्रेज अफसर ने अपने अटोवायोग्राफी मे लिखा है
“Dalabehera Madhaba Chandra was not only a fighter for freedom, but also a great friend of the poor. No one hadever been turned away from his door empty handed. He wasloved and respected every where for his greatness of heart.”
(दलवेहेरा एक उपाधी है जो पाइक सर्दारों को मिलाकरता था ....)
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