लेखक श्री विश्वकेश त्रिपाठी ने अपने अंग्रेजी पुस्तक "खारबेल द वारियर सिकर" मे
इतिहास व जनसृति को मिलादिया है ।
चलिये ये कथा पहले संक्षेप मे जानलेते है ।
यह कथा भारत के अर्धाधिक भूमि पर विजयी ध्वज फहराचुके
महामेघवाहन ऐरपुत्र खारबेल के जीवनी को आधार बनाकर लिखागया है ।
उन्होने अपने किताब मे शेषभारतीयोँ कि भाँति खारबेल को कलिगेँतर राज्य से बताया है । वे कहते है
खारबेल ने सर्वप्रथम कलिगंविजय किया था ....
संभवतः दक्षिण कि कालचुरी राजा करवर को वे खारबेल मानते होगेँ !
खारबेल ने 12 वर्षोँतक युद्ध अभियान चलाया !
दक्षिणी ,पश्चिमी व उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सोँ को अपने अधीन ले आये थे !
उत्तर पश्चिम भारत मे राज करनेवाले ग्रिक् मुख्य सेनापति ड्रिमेटियस् को मथुरा से ग्रीस् लौटने को मजबुर करदिया था !
दक्षिणी राजा सातकर्णि को भी खारबेल से हारना पड़ा था ।
अन्ततः खारबेल ने अपने 34वेँ वर्ष मे शक्तिशालि मगध पर धावा बोलदिया !
पटालिपुत्र हारा ...सम्राट खारबेल मगधराजकुमारी के कक्ष मे गये और राजकन्या को विवाह प्रस्ताव दे डाला !
उसी कक्ष मे उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे उन्होने युद्ध व हिँसा त्यागदिया ! इससे
उनके जीवनशैली मे भारी बदलाव आया और वे योद्धा से साधक बने !
उनकी रानी रतिका ,मंत्री सुमित्र ,मालव्य राजा इंद्रद्युम्न , रानी गुण्डिचा ,मालव्य राज विदूषक विध्यापति ने खारबेल को इस महत् उद्देष्य पूर्ति हेतु
सहयोग किया था !
सारा भारतवर्ष मे भ्रमण करते करते एक दिन खारबेल को नीलगीरी मे पूजे जा रहे शवर देवता जगन्त के बारे मे ज्ञात हुआ !
लेखक यहाँ मूल जनसृति से हटकर लिखते है....
खारबेल ने शवर राजा विश्वाबसु से मालब्य राज विदूषक बिद्यापति से सुसंपर्क स्थापन करवा दिया
और बादमेँ सभी जातिओँ ने शवर देवता जगन्त को जगन्नाथ मानकर उनका पूजा करना शुरुकरदिया जो अबतक बरकरार है ।
जाहिर सी बात हे ... जनसृति इतिहास नहीँ है और जनसृति को भी यदि काटछाँटकर या बढ़ाचढ़ाकर लिखाजाय तो वो अपना एहमियत खो देगा !
यहाँ लेखक ने नीलमाधब को यहाँ जगन्त बताया है !! मूल जनसृति मे कहागया हे नीलमाधब ही जगन्नाथ के आदिरुप हे....
वहीँ मालव्य राज इंद्रद्युम्न....
पुराण प्रशिद्ध सत्ययुगी राजा है
अतः उनका भविष्य मे होना
नित्यान्त अवास्तव लग रहा हे ।
दरसल इंद्रद्युम्न राजशक्ति का धोतक है !
जनसृति के जरीये पण्डितोँ ने परोक्ष रुप से यही कहा है कि
राजशक्ति के बलपर एक शवर देवता को बलपूर्बक हो अथबा जनसमर्थन से हिन्दु देवता मे बदलदिया गया !!
हमारे फेसबुक के एक भाई Santosh kumar mishra जी ने एकबार इसी तरह का एक लेख लिखा था !! जाहिर सी बात हे ...खारबेल के जीवनी पर ये जनसृति प्रशिद्ध है
परंतु जैन पंथ के साधु खारबेल पर अन्य एक जनसृति सुनाते है !!
उनके हिसाब से खारबेल ने प्रौढ़ावस्ता मे सिँहासन त्यागदिया
वे वानप्रस्त आश्रम का पालनपूर्वक जंगलवासी साधुओँ कि रक्षा करने लगे । तब
उनकी पत्नी गर्भवती थी वे कुछ खास दवा लाने मालव्य देश गये और वहाँ उन्हे लुटेरा समझकर कारागार मे डालदिया गया !!
खारबेल का परिवार एक व्यापारी के साथ जंगलोँ से मालव्य देश आया और रहने लगा !
खारबेल कि सज़ा सुनवाईवाले दिन मालव्य राजा ने उन्हे पहचान लिया !
मालव्य राजा ने दण्ड विचार संबन्धिय सभी क्षमता
खारबेल को सोँप दिया और
उधर उनके परिवार को भी खोजा जा रहा था !
इन सब घटनाओँ से अनजान खारबेल के जैष्ठ पुत्र को मालब्य राजकुमारी से प्रेम हो गया
मालव्य राज को पताचला...
उन्होने खारबेल पुत्र को कारवास भेजदिया
और ठिक न्याय विचारवाले
दिन खारबेल व उनके पुत्र एक दुसरे को पहचान गये !!
दोनोँ कथाओँ मे दो समानताएँ है
मालव्य और प्रेमप्रकरण !!
मालव्य संभवतः दक्षिणी राज्य मालव हो सकता है
वहीँ यहाँ प्रेम मतलब एक तरह की आपसी सहमति या संधि भी हो सकता है ।....