1590 से 1595 तक अकबर के दो हिन्दुमंत्रीओँ के सुशासन हेतु
कुछ कालोँ तक शान्ति विराजमान रहा !
बाकी के वर्षोँ मे #ओड़िशा सिर्फ अशान्ति लुटपाट अराजकता का लीलाभूमि बनकर रह गया !
कहते है छिद्रेष्वनर्था बहुळी भवन्ति
अर्थात् विपदा आता है तो बहुधा आता है !
अभी अफगान मोगलोँ का अत्याचार कम् नहीँ हुए थे कि
मराठीओँ के शताधिक अश्वटापुओँ से समुचे क्षेत्रमेँ हाहाकार मचगया !!
क्या इतना अत्याचार सहन करते हुए कोई जाति इससे उभर सकता है ?
मोगलोँ के अत्याचारोँ से लोग दाने दाने के महताज् हो गये थे
मोगोलोँ के साथ ओड़िशा मे गरीबी और अकाल दोनोँ आये
थे और अबतक विराजमान है
जिसे मराठाओँ ने अंग्रेजोँ ने और बढ़ादिया था सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये !
1704 मेँ आलिवर्दी खाँ बंगाल नवान नियुक्त हुए
स्थानीय नायव नवाव मुर्शिदकुलि खा के साथ उनका विवाद हुआ !
उनदिनोँ खोर्धा पुरी के राजा वीरकिशोरी देव का समर्थ मुर्शिदकुलि खाँ के तरफ था !
विभिन्न वादविवादोँ के बीच कुछ वर्ष बीतगये .....
1742 -43 AD मे वेरा के माराठा शासक का ओड़िशा के मोगलबंदी इलाकोँ पर भारी सैन्योँ के साथ आगमन हुआ !
वे भास्कर पण्डित .आलिसा तथा अन्य मराठा सरदारोँ के साथ यहाँ आये थे !
मूल उद्देश्य था जैसे तैसे बस धन जुटाना !
उनदिनोँ स्थानीय शासकोँ [Odisha] के पास सैन्य संख्या कम था वहीँ यहाँ के शासक तब मोगलोँ के अधिनस्थ करदराजा हुआ करते थे !
मोगलोँ के अत्याचार से त्रस्त
जनता ,
स्थानीय राजाओँ को तो मानती थी परंतु बंग नवाव या दिल्ली सिँहासनारुढ़ सम्राट से घृणा
यहाँ प्रचलित कथा कहावत
जनसृतिओँ मे साफ नजर आता है ।
तो मराठीओँ को बाधा देना असम्भव हो गया था च्युँकि क्षेत्र मेँ आपसी एकता उतना सुदृढ़ नहीँ थे....
राजा का दोष प्रजा पर निकालते हुए मराठी आक्रमणकारी बारबाटी(कटक) दूर्गतक के इलाकोँ मे लुटपाट मचागये और जहाँ जो मिला ले गये !
अगले वर्ष भी यही सब हुआ !
इसबार रघुजी भोँसले और अधिक सैन्य लेकर आये और उनके साथ आये थे विख्यात हबिबुल्ला !!
आलिवर्द्दि खाँ तब मोगलबंदी इलाकोँ [Bihar,bengal,odisha] के मोगलोँ द्वारा नवाव नियुक्त हुए थे....
वे मराठाओँ को रोक पाने मेँ नाकाम् रहे
अतंतः उन्हे मजबुरन नजिम् व भोँसले के साथ संधि करना हुआ !
संधि मे सर्त्त था
कि बंग ,विहार व ओड़िशा के मोगलबंदी इलाकोँ से मराठाओँ को 2400000 रुपया देना होगा !
बंग नवाव इस संधि के सर्त्तोँ को माने नहीँ अतः मराठीओँ ने 1751 मेँ मोगलबंदी इलाकोँ मे फिर हमला करदिया !
राजा जानोजि भोँसले और मीर हविबुला ने इस आक्रमण का नेतृत्व किया !
अब आलिवर्दी खाँ का मराठीओँ के आगे झुकना लगभग तय था....
उसी साल जानोजी और हविवुला ने अपने अपने सैन्योँ के व्यय भार वहन करने हेतु
ओड़िशा को दो हिस्सोँ मे
बाँट दिया था !
उन दिनोँ ओड़िशा से वार्षिक आय 10 लाख के आसपास होते थे....
पट्टासपुर से बरुआँ तक का उत्तरी हिस्सा अफगान हविबुला को मिला -आय 6 लाख !
बरुआँ से मालुद तक के भूखंड पर मराठीओँ का प्रत्यक्ष प्रभाव रहा -आय 4 लाख !
महानदी निकट चौद्वार छावनी मेँ ये लोग ओड़िशा को चंद मिँटो मेँ बाँट दिए थे !!!
उस ओड़िशा को बाँट गये
थे जिसे एक झंडेतले लाने के
लिये [utkal+kalinga+odra-anga+kosal]
7वीँ सदी मेँ ययाति [जजाती] केशरी को वर्षोँ खटना पड़ा था !
क्रमशः ...
सभार
Prachin utkal
late shri jagbandhu singh
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