बंगाली 15वीँ सदी तक शाक्त धर्म के मूल भावनाओँ को छोड़बली प्रथा और तंत्रमंत्र के जाल मेँ फँसकर अंधविश्वासी बन गये थे
ऐसे ही भयंकर परिस्थिति मेश्रीचैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था
वैष्णव धर्म रक्षार्थे
उनके पूर्वज जाजपुर जिल्ले के मिश्रा सरनेम धारी ब्राह्मण थे
पुरी राजा से हुए विवाद के कारण उनके पिता ओड़िशा छोड़ दिए थे
और बंगाल चले गये थे
वहाँ उनका परिवार सिर्फ 55 साल तक रहा था
दिक्षा लेने के बाद
अपने बाकी कि जिँदेगी
यानी अंतर्ध्यान होने तक
श्री चैतन्य पुरी मेँ ही रहे
ये भी यहाँ प्रणिधान योग्य हे कि पहले मिश्र सरनेमधारी ब्राह्मण या तो मिथिला मे होते थे या ओड़िशा मे
बंग्लादेश से माइग्रेटेड बंगाली
वर्षोँ से भारत के कई हिस्सो मेँ खुद को बंगाली परिचय देते हुए रह रहे है
तब श्री चैतन्य सिर्फ जन्म आधार पर बंगाली कैसे हुए ?
चलो यही नियम मान भी लिया जाय
तब तो इस हिसाब से सुभाष चंद्र वोष ओड़िआ हुए
च्युँकि उनका जन्म व 15 वर्षोँ तक पालन पोषण पढ़ाई लिखाई यहीँ ओड़िशा के कटक जिल्ला सत्यभामापुर गाँव मे हुआ था !!