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गुरुवार, 29 सितंबर 2016

कैसे बना सम्बलपुर जंगल से जनपद

वर्तमान बलांगिर जिल्ला
एक समय
पाटणा गड़जात के नामसे प्रशिद्ध हुआ करता
था ।

बलांगिर-पाटणा मे 15वीँ सदी मेँ नृसिँहदेव के नामसे एक राजा का राज था ।

नृसिँहदेव कि रानी भयंकर वर्षा रजनी के समय आसन्न प्रसवा हुई !

राजनवर तथा धाई माँ के गाँव के बीच एक स्रोतस्वती नदी हुआ करती थीँ ।

वह नदी पार करना
ओर उस पार जाकर
धाई को लाना
ये मुस्किल को हल करने को
राजा दिमाग दौडा रहे थे
कि
उनको
बिना बताए
उनके छोटे भाई बलराम देव
भीषण परिस्थितिओँ मे
नदी पार कर के गाँव पहँचे
और
धाईमाँ को अपने पीठ पर बिठाए
नदी पार कर लाए ।

यथा समय धाई ने अपना कार्य संपादन किया
जब नृसिँहदेव उनके अनुज भ्राता का पराक्रम पताचला
वे अत्यन्त खुस हुए

अनुज बलरामदेव को बर्तमान संबलपुर क्षेत्र
भेँट दे दिया था ।

हाँलाकि संबलपुर तब
खांडवप्रस्थ के तरह जंगल ही था
फिर भी बड़े भाई से मिले स्नेह भेँट को ग्रहण कर
वो जब विदाय लेने माता के पास पहँचे
राजमाता ने अपने कनिष्ठ पुत्र से कहा
"बेटा
तु आजसे
# अंगनदीके उत्तरभाग का अधिपति है
दक्षिणी राज्य पर कदापी लोभ न करना
न अपने बड़े भ्राता से कलह"
इतिहास गवाह है
संबलपुर मे उनके आनेवाले पिढ़ीओँ ने कभी बलांगीर पर
हमला नहीँ किया
संबलपुर के लोगोँ कि वीरता
किसी से अविदित नहीँ है
1858 तक जब सारा भारत अंग्रेजोँ के हातोँ मे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुपसे आ ही गई थी
तब भी संबलपुर को अंग्रेज जीत नहीँ पाए थे ।

10साल तक कड़े संघर्ष के बाद
सुरेन्द्रसाए जैसे वीरोँ के बलिदान के बाद जाकर ये अंग्रेजोँ के हाथ आया ।

बुधवार, 28 सितंबर 2016

ओड़िशा मे रामायण

भारत मे मूल बाल्मिकी रामायण से प्रेरित
तिन प्रकार के
रामायण ग्रंथ पाएजाते है
I-औदीच्य
II-दाक्षिणात्य
III-गौडीय
तिनोँ मे सर्ग संख्या तथा पाठ मे भिन्नताएँ देखा जा सकता है ।
उत्कलीय कविओँ ने भी रामायण को अपने मातृभाषा मेँ
भावानुवाद करने कि कोशिश कि है ।
1.
उत्कलीय कवि विश्वनाथ खुंटिया
ने
बाल्मिकी रामायणको Odia मे लिखा
लोगोँ ने उनके द्वारा लिखेगये
रमायण को विचित्र रामायण
या विशिरामायण नाम दिया ।
Archive . com मेँ आपको विचित्ररामायण का हिँदी लिपान्तरण पुस्तक प्राप्त होगेँ ।
2.
ओड़िआ कवि हरिहर ने पद्याकार # सुचित्र_रामायणलिखा था !
3. जगन्नाथ दास के शिष्य पुरीनिवासी बलराम दास ने 16वीँ सदी मे जगमोहन रामायण लिखा ।
4.19वीँ सदीके प्रारम्भिक काल मे गंजाम जिले के कवि कृष्ण चरण पट्टनायक ने मूल रामायण का पद्यनुवाद किया था
यह रामायण कृष्ढ रामायण कहलाया ।
5.केशव पट्टनायक नामक अन्य एक कवि ने भी बाल्मिकी
रामायण का भावानुवाद किया
यह ग्रंथ को लोग केशव रामायण कहने लगे ।
आधुनिक काल मे स्वर्गीय पण्डित कपिलेश्वर विद्याभूषण तथा फकीरमोहन सेनापति
तथा भागवत प्रसाद दान
आदि कवि लेखकोँ ने पुनः पुनः मूल
रामायण का ओड़िआ पद्य भावाअनुवाद
किया था ।
इसके अलवा प्राचीन व नवीन युग के कविओँ ने रामायण से सार संग्रह पूर्वक कई काव्य ग्रंथ लिखे है ।
जैसे
प्राचीन कवि चिन्तामणि व मागुणि पट्टनायक का
दो अलग अलग रामचंद्र विहार ,
धनंजय भंज का रघुनाथ विलास,
कविसम्राट उपेन्द्रं भंज
का "ब" आद्य पद ममन्वित
"वैदहीशविलास"
इसमे हर पद ब से प्रारम्भ होता है ।
पीताम्बर दास ने अपने नृसिँह पुराण मे रामायण का संक्षिप्त वर्णन किया ।
गंजाम के कवि कान्हु दाश कृत रामरसामृत ,
चिकिटि के स्वर्गीय पीताम्बर राजेन्द्र के द्वारा लिखेगये रामलीला आदि प्रसिद्ध है ।
वहीँ
आधुनिक काल के कवि मधुसुदन राव ने वालरामायण लिखा
था ।
रत्नाकर गर्गवटु ने रामायण का सार संग्रह पूर्वक संक्षिप्त रामायण लिखा ।
अरुणोदय प्रेस तथा सारस्वत प्रेस ने भी 2 अलग अलग रामायण ग्रंथ छपवाया
था ।
वलराम दास ने 16वीँ सदी मे बालरामायण लिखा,चंद्रशेखर नंद ने रामायणकथा ,नीलकंठ दाश ने भी बालकोँ के लिए
पिलाकं रामायण रचना किया ।

उत्कलीय नाट्यशास्त्रोँ मे रामकथा तथा रामायण पर आधारित कई नाटक लिखे गये है
कुछ प्रसिद्ध नाटकोँ के नाम इसप्रकार है !
1.लंकादहन-भिकारी पट्टनायक
2.राम बनवास-रामशंकर राय
3.अहल्याशापमोचन-पद्मनाभ नारायण देव
4.सीता बिबाह-कामपाळ मिश्र
5.रावण वध -हरिहर रथ
6.रामाभिषेक -हरिहर रथ
7.रामजन्म ,रामनिर्वासन-हरिहर रथ
8.सीतावनवास गीतिनाट्य-
नन्दकिशोर वल !
संस्कृत के
आध्यात्म रामायण का भी ओड़िआ अनुवाद
हुआ है ।
हलधर दास ,तेलुगुभाषी गोपाल कवि ,गंजाम के सूर्यमणी पट्टनायक आदि कविओँ ने इस ग्रंथ का ओड़िआ अनुवाद किया था ।
इनके अलावा
आदि कवि सारला दास ने
विलंका रामायण नामसे एक पद्यग्रंथ लिखा था
इसके कथानक रामायण से पूर्णतः भिन्र है ।
अतः कुछ लोग इसे निजस्व ,लिँक से हटाहुआ तथा काळ्पनिक कृति मानते है ।
यहाँ रामायण के बाद
कि कहानी बर्णना किए गये है ।
पातालस्थ विलंका
नगरी राजा सहस्रमुख रावण को
राम आक्रमण कर सीता के शक्ति से विलंकासुर को कैसे मारते है
यही इसमे बताया गया है ।
कम शब्दोँ कहे तो ये भारत का एक अकेला इकलौता नारिवादी रामायण है ।

ओड़िआभाषा का पहला उपन्यास

Odiaभाषा मेँ लिखागया पहला उपन्यासका नाम कितने ओड़िआजानते है ?
1878 मेँ रामशंकर राय ने
उपन्यास लिखने कि कोशिश कि थीँ
सौदामिनी
परंतु च्युँकि
इसका धारावाहिक प्रकाशन
उत्कळमधुप पत्रिका मेँ छपता था
पत्रिका के बंद हो जाने से
यह असंपूर्ण रहगया
पाँचवार प्रयास करके
भी
कभी पूर्णतः छप नहीँ पाया....
एक बंगाली मातापिता से
उमेश_चंद्र_ सरकार का जन्म पुरी पुरुषोत्तमधाममेँ हुआ था ।
उमेश चंद्र ने ही पहला Odia उपन्यास लिखा था पद्ममाली
odia भाषा का प्रथम पूर्ण
उपन्यास है ।
1888 से यह उपन्यास
ढ़ेँकानाल सहर से सबसे पहले प्रकाशित हुआ था ।
उपन्यास कि कथानक
नीलगिरि राज्य के राजकर्मचारीओँ द्वारा पाँचगड़ राज्य पर आक्रमण
तथा हरिहर भ्रमरवर का नीलगिरि आक्रमण
मुख्य विषयवस्तु है ।
यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि
20वीँ सदी के शुरवात मे
कोलकाता विश्वविद्यालय मेँ
ओड़िआ छात्रोँ के पाठ्यपुस्तक के रुप मे इसे सामिल किया गया था ।
पद्ममाली का द्वितीय संस्करण
तालचेर से 1912 मेँ
तथा
1930 मे तृतीय संस्करण लक्षीनारायण प्रेस कटक से प्रकाशित हुआ ।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

जब इंग्लैण्ड मे रेवेन्सा से मिले मधुसुदन !

Mr. reveshaw
एक अंग्रेज कर्मचारी थे
व्रिटिशराज के समय !

जब ओड़िशा उनका कर्मस्थली बना
उन्होने Odia भाषा सिखना शुरुकिया !
वे सिख भी गये

19वीँ सदी कि मध्यभागमे ODISHA मे एक भी सरकारी स्कुल न था

रेभेन्सा ने सोचा चलो एक स्कुल खोला जाय


उन्होने रेभेन्सा कलेजिएट स्कुल कि स्थापना कि
यहाँ सुभाष वोष भी पढ़चुके है ।


अच्छा रेभेन्सा ने श्रीगणेश करदिया

कुछ वर्षोँ बाद
इंलण्ड चले गये

कुछ वर्षोँ बाद
कोलकता विश्वविद्यालय के अध्यापक
आष्टन
तथा उत्कल गौरव मधुसुदन दास
इंलण्ड संस्कृति मेले मे गये हुए थे

आष्टन को पता न था
रेवेन्सा मधुबाबु को जानते है

वे उनका परिचय रेवेन्सा से कराने लगे

रेवेन्सा को आष्टन ने कहा
लिजिये मिलिए
अपने पुराने बंगाली छात्र
मि. दास से ।

ये सुनकर
मधु बाबु मुस्काए
फिर
रेवेन्सा व मधुसुदन ODIA मेँ बात करने लगे

ये दैखके आष्टन भौँचके रहगये






सोमवार, 5 सितंबर 2016

अंग्रेजोँ के नमक कानुन के खिलाफ प्रथम प्रतिवाद सभा -1888

शायद ज्यादातर भारतीयोँ को ये ज्ञात न हो !
गांधीजी के नमक सत्याग्रह आंदोलन व दाण्डियात्रा से 42 साल पहले
1888 मे नमक टैक्स के खिलाफ
सर्व प्रथम प्रतिवाद सभा
Odisha के कटक स मे आयोजित हुआ था ।

बात 1888 कि है
उस साल अंग्रेजोँ ने एक विवादास्पद कानुन बनाया
जिससे पूर्वभारत के लोग
समंदर से नमक नहीँ बना सकते थे ।
इस कानुनके तहत कोलकता से निमक माहल यानी नमक बनाने के अधिकार छिनकै मद्राज को दे दिया गया !
मद्राज मे अंग्रेजोँ ने नमक के कारखाने लगाये थे
इसलिये वे चाहते थे लोग उनका नमक इस्तेमाल करेँ ।
अब अविभक्त बालेश्वर जिला मे उनदिनोँ 90 प्रतिशत लोग नमक व्यवसाय से जुड़े हुए थे ....इस कानुन से उनका रोजी रोटी छिन गया


इस विषय पर उन्हीदिनो
कटक प्रिँटिगं प्रेस मे
मधुसुदन दास ने रामशंकर राय
को कहा तुम एक सभा का आयोजन करो

तब रामशंकर वोले

सभा कि तैयारी तो हो जाएगी
लेकिन अब ये तो आम आदमीओँ कि सभा होगी
और आप तो अंग्रेजी मे ही अबतक भाषण देते आए है
क्या यहाँ भी ?

मधुबाबु कुछ क्षणोँतक हँसते रहे

और फिर सभावाले दिन
वे ओड़िआ मे पहलीबार
जन सैलाव को संवोधित कर रहे थे...

मधु ने जैसे ही कहा
धनी असल मे गरीब होते है
और गरीब ही अमीर

तालीओँ के गड़गड़ाहट से गगन पवन प्रतिध्वनित हो गया ।

इस प्रतिवाद सभा के बारे मे डा. वि .पट्टाभि सीतारामाया
Histroy of the congress vol-i page 82
मे लिखते है
....
knowing as we do the genesis of the tax and the
recommendations made by the salt commission of 1836,we can not but feel a surprise that the grouds on which the tax was attacked in 1888 by the congress were not that it was inequitous and meant to assist british
shipping industry and british export trade ,but that it was recently enhanced.....com