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शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

जामशेदपुरे

जामशेदपुर आज एक Industrial city है
लेकिन
पहले ऐसा न था ।
काळिमाटि ,साक्नी जैसे कुछ उडिया आदिवासीओँ का गाँव यहाँ हुआ करते थे यहाँ !

टाटा कंपनी ने उन लोगोँ की पैतृक संपत्ति को छिनकर वहाँ
करखाने बनाए और तबसे इस जगह का नाम जामशेद टाटा के
नामसे जमशेदपुर हुआ है ।

इस विषय मेँ एक उडिया गीतिकविता
देवनागरी लिपान्तरण के साथ

    -जामसेदपुरे-

एहि ये नगरी आजि मुँ देखे नय़ने चाहिँ
धन दउलते डउल सरि एहार काहिँ ?

सउधु सउध गगने शिर उठिछि टेकि,
मरतु रखिबा पाहाच बान्धि सरगे निकि !

सुख सउभाग्य़े निरते हसि रहन्ति जने ।
मर दुःख शोक नाहान्ति सते देखि नय़ने ।

कळे निति धन संपद शिरी गढ़न्ति करे
लुहारे करन्ति सुना से कर परशे खरे ।

कि अछि अपूर्ब मर्त्त्य़े या धरि नाहान्ति बसि ?
मनासन्ति सते भूंजिबे स्वर्ग संपद हसि ।

एहि ये सम्भार नय़ने दिने देखिबा पाइँ
निखिळ भूबनु सरागे जने आसन्ति धाइँ ।

माडि ये याअन्ति चरणे शिळा
सरणी परे,
अजाणिते केते दरिद्र आशा बिलुप्त भाले ।

कळ घन मन्द्र गर्जने कर्णे शुणन्ति मिशा
दुःखिहृद बृथा गुपत धीर नीरब भाषा ।

केते आहा पल्ली कृषके चित्त उल्लास ताने .
हळ बाहि एहि प्रान्तर भरि न थिबे दिने ।

केते त कृषक घरणी भोके गिरस्त लागि
भात घेनि बिले थिबटि आसि सरमे भागी ।

प्राणपति पेटु बळिले . लता उढ़ाळे बसि ,
निज पेट अळ्पे मउने भरिथिबटि हसि ।

फेरन्ते कुटीरे चरण लागिथिब ता भारि ,
गिरस्त संगरे नथिले ,किबा कुटीर शिरी ?

सेही शिरीमान भागिँ त गढ़ा ए पुरी आजि ,
सेहि पल्ली सुखशरधा एथि रहिछि भाजि

खोळिले मृत्तिका पाइब हळ लंगळ गार ,
दुःखी हृदे देखि पारिब धन पेषण भार ।

गछ लता मूळ निकाशे आजि नथिब शुखि ,
दिने यहिँ काटि फसल चषा थिबटि रखि ।

केदार कनक सम्भारे भरिथिब
ता मन
तोषे बरषटि खाइ ,से यापिपारिब दिन ।

आजि एबे याइ केबण दूर दुर्गम पथे ,
धरि स्तिरी पुत्र अन्दुटि थिब निशून्य़ पेटे ।

सुमरु थिब ता अतीत भब संपद कथा
शमन जीबन्त पीडने नोइँ दइने
मथा ।

निदारुण एहि छबि के येबे देखिब लोड़ि ,
ए कुबेर पुरे किपाइँ
बारे आसिब बरि ?

कुलिबार याइ आसे त मरु पदा कानने ,
अनशने यहिँ उदर जाळि भ्रमन्ति जने ।

रह , हे नगरनिबासि ,
अर्द्ध नृपतिराजि;
न फेरिबि दिने ए पुरे ,तेजि याउछि आजि ।

रंकनाथ मंदिर

श्रीरंकनाथ मंदिर संभवतः ऐसा इकलौता मंदिर है

जहाँ श्रीजगन्नाथ बलभद्र सुभद्रा
पूर्णागं पूजे जाते है ।

खोर्द्धा से नयागड जानेवाले रस्ते  मे आता है
एक गाँव जागुळाइपाटणा
इसी गाँव मेँ है यह ऐतिहासिक देवालय ।

श्रीरंकनाथ
मंदिर प्रतिष्ठा को लेकर
एक जनसृति प्रचलन
है

पुरी राजा तृतीय नरसिँह देव को
19वीँ सदी मेँ अंग्रेजोँ ने
हत्या के आरोप मे कालापानी भेजदिया था ।

वो वहाँ से समंदर मे तैर कर भागने मेँ सफल हो गये

राजा तैर कर
पूर्वभारत मे पहँचे
और जब अंग्रेजोँ को राजा के पुरी मे होना का पताचला
वे फिर बंदी बनाए गये

लेकिन
इसबार उन्हे कटक मेँ कारागार मेँ कैद करदिया गया था ।

एक दिन रात को एक अनजान व्यक्ति ने कारागार से राजाको मुक्त कराया
ओर अपने पिछे चलने को इशारा करते हुए आगे चलने लगा ।

चलते चलते रात से कब सुबह हुआ
राजा को कोई सुद न था
वे बस चलते जा रहे थे
यन्त्रवत् !

जहाँ आज मंदिर है वहाँ उनदिनोँ घने जंगल हुआ करते थे

राजा को यहाँ पहँचने पर संत रघुवीर दास का कुटिआ मिला ।

वे उनके शिष्य बनगये
व तबसे दयानीधि दास कहलाए ।

परवर्त्ती काल मे दयानिधि दास के परम शिष्य खण्डपडा राजा नरेन्द्र ने यहाँ तालाव व मंदिर निर्माण करवाया था