जामशेदपुर आज एक Industrial city है
लेकिन
पहले ऐसा न था ।
काळिमाटि ,साक्नी जैसे कुछ उडिया आदिवासीओँ का गाँव यहाँ हुआ करते थे यहाँ !
टाटा कंपनी ने उन लोगोँ की पैतृक संपत्ति को छिनकर वहाँ
करखाने बनाए और तबसे इस जगह का नाम जामशेद टाटा के
नामसे जमशेदपुर हुआ है ।
इस विषय मेँ एक उडिया गीतिकविता
देवनागरी लिपान्तरण के साथ
-जामसेदपुरे-
एहि ये नगरी आजि मुँ देखे नय़ने चाहिँ
धन दउलते डउल सरि एहार काहिँ ?
सउधु सउध गगने शिर उठिछि टेकि,
मरतु रखिबा पाहाच बान्धि सरगे निकि !
सुख सउभाग्य़े निरते हसि रहन्ति जने ।
मर दुःख शोक नाहान्ति सते देखि नय़ने ।
कळे निति धन संपद शिरी गढ़न्ति करे
लुहारे करन्ति सुना से कर परशे खरे ।
कि अछि अपूर्ब मर्त्त्य़े या धरि नाहान्ति बसि ?
मनासन्ति सते भूंजिबे स्वर्ग संपद हसि ।
एहि ये सम्भार नय़ने दिने देखिबा पाइँ
निखिळ भूबनु सरागे जने आसन्ति धाइँ ।
माडि ये याअन्ति चरणे शिळा
सरणी परे,
अजाणिते केते दरिद्र आशा बिलुप्त भाले ।
कळ घन मन्द्र गर्जने कर्णे शुणन्ति मिशा
दुःखिहृद बृथा गुपत धीर नीरब भाषा ।
केते आहा पल्ली कृषके चित्त उल्लास ताने .
हळ बाहि एहि प्रान्तर भरि न थिबे दिने ।
केते त कृषक घरणी भोके गिरस्त लागि
भात घेनि बिले थिबटि आसि सरमे भागी ।
प्राणपति पेटु बळिले . लता उढ़ाळे बसि ,
निज पेट अळ्पे मउने भरिथिबटि हसि ।
फेरन्ते कुटीरे चरण लागिथिब ता भारि ,
गिरस्त संगरे नथिले ,किबा कुटीर शिरी ?
सेही शिरीमान भागिँ त गढ़ा ए पुरी आजि ,
सेहि पल्ली सुखशरधा एथि रहिछि भाजि
खोळिले मृत्तिका पाइब हळ लंगळ गार ,
दुःखी हृदे देखि पारिब धन पेषण भार ।
गछ लता मूळ निकाशे आजि नथिब शुखि ,
दिने यहिँ काटि फसल चषा थिबटि रखि ।
केदार कनक सम्भारे भरिथिब
ता मन
तोषे बरषटि खाइ ,से यापिपारिब दिन ।
आजि एबे याइ केबण दूर दुर्गम पथे ,
धरि स्तिरी पुत्र अन्दुटि थिब निशून्य़ पेटे ।
सुमरु थिब ता अतीत भब संपद कथा
शमन जीबन्त पीडने नोइँ दइने
मथा ।
निदारुण एहि छबि के येबे देखिब लोड़ि ,
ए कुबेर पुरे किपाइँ
बारे आसिब बरि ?
कुलिबार याइ आसे त मरु पदा कानने ,
अनशने यहिँ उदर जाळि भ्रमन्ति जने ।
रह , हे नगरनिबासि ,
अर्द्ध नृपतिराजि;
न फेरिबि दिने ए पुरे ,तेजि याउछि आजि ।