श्रीरंकनाथ मंदिर संभवतः ऐसा इकलौता मंदिर है
जहाँ श्रीजगन्नाथ बलभद्र सुभद्रा
पूर्णागं पूजे जाते है ।
खोर्द्धा से नयागड जानेवाले रस्ते मे आता है
एक गाँव जागुळाइपाटणा
इसी गाँव मेँ है यह ऐतिहासिक देवालय ।
श्रीरंकनाथ
मंदिर प्रतिष्ठा को लेकर
एक जनसृति प्रचलन
है
पुरी राजा तृतीय नरसिँह देव को
19वीँ सदी मेँ अंग्रेजोँ ने
हत्या के आरोप मे कालापानी भेजदिया था ।
वो वहाँ से समंदर मे तैर कर भागने मेँ सफल हो गये
राजा तैर कर
पूर्वभारत मे पहँचे
और जब अंग्रेजोँ को राजा के पुरी मे होना का पताचला
वे फिर बंदी बनाए गये
लेकिन
इसबार उन्हे कटक मेँ कारागार मेँ कैद करदिया गया था ।
एक दिन रात को एक अनजान व्यक्ति ने कारागार से राजाको मुक्त कराया
ओर अपने पिछे चलने को इशारा करते हुए आगे चलने लगा ।
चलते चलते रात से कब सुबह हुआ
राजा को कोई सुद न था
वे बस चलते जा रहे थे
यन्त्रवत् !
जहाँ आज मंदिर है वहाँ उनदिनोँ घने जंगल हुआ करते थे
राजा को यहाँ पहँचने पर संत रघुवीर दास का कुटिआ मिला ।
वे उनके शिष्य बनगये
व तबसे दयानीधि दास कहलाए ।
परवर्त्ती काल मे दयानिधि दास के परम शिष्य खण्डपडा राजा नरेन्द्र ने यहाँ तालाव व मंदिर निर्माण करवाया था
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