विशिष्ट पोस्ट

एक और षडयन्त्र

अनंत_वासुदेव_मंदिर भूवनेश्वर कि सर्वप्रथम पुरातन विष्णु मंदिर है ।पुरातन काल मे भूवनेश्वर को शैव क्षेत्र के रुप मे जानाजाता था यहाँ कई प...

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

-श्रीजगन्नाथ धार्मिक नामार्थ-

श्री- लक्ष्मी वैभव ।
प्रभु आप जगन्मय जौति स्वरुप
,सर्व प्रकाश्य आप हीँ मेरे पथ पदर्शक !
ज– ज अर्थात् उत्पत्ति विष्णु पितामाता तेजः आदि ।
समस्त सृष्ठि के कारण आप प्रभु
जनार्दन
आप ही से सर्वदेवताओँ कि सृष्ठि !
प्रभु आप वेद मन्त्र योग तथा ज्ञान के आदि उत्पत्तिस्थल !
आप हीँ आराध्य देवता श्रीविष्णु
, हम समस्त प्राणीओँ के पितामाता !
ग– ग अर्थ गमन स्वर्ग गुरु आदि !
हे प्रभु आप अनन्त , सागर से भी गहरे है
गुलाब से भी कहीँ अधिक कोमल आपका हृदय । प्रभु आप हम सभी के गुरु
हमारे आश्रयदाता ज्ञानदाता ।
न्ना(न)– न अर्थात् निराकार निर्विकार निविनाशी स्थानातीत निर्माया निरीह निर्मल !
निराकार निर्गुण नित्य अविनाशी परमात्मा परमेश्वर के सगुण साकार रुप हीँ श्रीजगन्नाथ ।
थ– थ शब्द का अर्थ पर्वत,भयत्राता ,मंगल ,रक्षण आदि !
प्रभु ! आप अजेय हो अनाथोँ के नाथ भयनाशक सर्व मंगलकारक ।
बाढ़ ,चक्रवात ,विधर्मी आक्रमणोँ
तथा
मेरे अपने भाईओँ के षडयन्त्रोँ से हमारा रक्षा करनेवाले आप
सर्वजनमोही परमात्मा हो
आप ही हमारे एकता के प्रतीक हो प्रभु....

वर्ष के 12 माह मे श्री जगन्नाथ जी के 12 यात्राएँ !

1.वैशाख शुक्ल त्रुतीया अर्थात् अक्षय त्रृतीया मे ‪#‎ चंदनयात्रा‬
इसे गंधलेपन यात्रा भी कहा जाता है ।

2.स्नान पूर्णिमा यानी जैष्ठ शुक्ल पूर्णिमा
‪#‎ स्नानयात्रा‬!
इसी दिन श्री जगन्नाथजी का जन्म हुआ था बताया जाता हे !
विश्वकर्मा आधा मूर्ति बनाके
अंतर्ध्यान हो गए थे !
भगवान जी का गजरुप होता है ।

3.रथयात्रा
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया
भाई बहन को साथ लिए प्रभु रथ से माउसीमाँ मंदिर तक यात्रा करते है ।

4.आषाढ़ शुक्ल एकादशी
हरिशयन एकादशी
‪#‎ बाहुड़ायात्रा‬
भगवानजी का श्रीमंदिर प्रत्यावर्तन उत्सव !

5. कर्कट संक्रान्ति
श्रावण कृष्ण द्वितीया
‪#‎ दक्षिणायनयात्रा ‬

6. भाद्रव शुक्ल एकादशी
पार्श्व परिबर्त्तन एकादशी
‪#‎ पार्श्वपरिबर्त् तनयात्रा‬

7. कार्त्तिक शुक्ल एकादशी
हरि उथ्थापन एकादशी देवोत्थान एकादशी
‪#‎ प्रवोधनयात्रा‬

8.मृर्गशीर शुक्ल षष्ठी
मूलक षष्ठी गृह षष्ठी
ओढ़ण षष्ठी

‪#‎ प्राबरणयात्रा‬
प्रभु शीतवस्त्र परिधान करते है ।


9. फालगुन शुक्ल पूर्णिमा
‪#‎ पुष्याभिषेकयात् रा‬

10. मकर संक्रान्ति
माघ कृष्ण सप्तमी
‪#‎ उत्तरायणयात्रा‬

11.फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा
दोलोत्सोव बसन्तोत्सव

12 चैत्र शुक्ल चतुर्दशी
दमनक लागि या
‪#‎ दमनक‬चोरी

सोमवार, 4 जुलाई 2016

बहू के चलना न आए जी...

बचपन मे नीचे लिखे भजन सुनके गुस्सा जाता था....
हूर्र ... ये भी कोई भजन है !!!
भगवन का स्तूति नहीँ
न गुणगान
अपने बोहू यानी पुत्रवधू के विषय मे अनाव सनाव कहागया है !!
लेकिन उम्र बढ़ने के साथ मैँ इसका असली अर्थ समझ पाया था !
‪#‎ विप्रश्री‬ ‪#‎ श्रीरघुनाथ_दास‬रचित
इस भजन मे ‪#‎ योग‬विषयक
हितवाक्य सरल भाषा मे कहा गया है ।
आर्त्तदास बनमाली दास आदि कविओँ के भजन मे योग मुख्य विषय रहा है
ऐसे ही एक भजन
Olata brukhye kheluchi lotani para
काफी प्रसिद्ध हुआ है ।
पैश है रघुनाथ दास जी के लिखे
वह भजन....
"बोहू चालि न जानई लो
पाद पड़ु अछि बंका
=>बहू (जीवात्मा) के चलना न आए जी
पद पड़त है बाँका
*मन से पराधीन जीव पाप कर्मोँ मे लिप्त है
"जेउँदिन बोहू चालि जानिजिब
घरे पड़िजिब डका"
=>जिसदिन बहू चलना जानजाए
घर मे हो जाए डका(सम्मान)
*व्यक्ति सदमार्ग मे चलना जान जाए तो सर्वत्र उसकी पूजा होगी
"जेउँ दिनुँ बोहू बापघरठारु
अईला ससुर घर कु"
=> जिस दिन बहू माईके से
लौटी ससुराल मे
*अर्थात परम् ब्रह्म से अलग
हो जीव जब संसार मे प्रकट हुआ
"आपणा पति र संगे संग नाहिँ
रसरे रसाए पर कु"
=>अपने पति के संगे संग नहीँ
रसमे रसाती दुजे को
*अपने पति अर्थात् परमात्मा को भूल कर जीव विषय भोग मे
लिप्त है
"पाँच भल लोक बुझाई कहिले
न बुझिला बोहू तिळे"
=>पाँच भले लोग समझाए
लेकिन मनाती नही बहू बिलकुल
*पाँच इंद्रियोँ के जरीये सच्चाई को जान कै भी जीव समझ नहीँ रहा
"अर्न पाणि बोहू किछि न खाईण
रहिछि शून्य़ आहारे"
=>अर्ण जल बिना बहू रह रही शून्य आहारे
*जीव के लिए जप तप हि असली आहार है
"पचिस नणन्द जंजाळ करन्ति
बोहू मोर बारुँआळी
=>पच्चीस ननन्द परेशान करती बहू मेरी झगड़ालु
*पच्चीस ननन्द यानी कि मानव सुलभ पच्चीस प्रकृति
से परेशान जीव दुनिया भर मे झगड़ा करता फिरता है ।
बोहू दूर्द्दण्डि सहि न पारइ
बुलइ पड़िशा ओळी
=> बहू दूर्द्दण्डी(उद्दण्डी) सह नहीँ पाती
घुमती पडोशीओँ कि मोहल्ले गली
*इंद्रय सुख तथा मन तोष के लिए
जीव चहुँ ओर दौडता रहता है
"बोहू गोटिक मुँ करि आणि अछि
खाउन्दा घर र झिअ"
बहू ऐके मेँ कर लाया हुँ
खानेवाले घर कि बेटी
*जीव मात्र मे खाते है फिन् शौच करते है
इसलिए ऐसा कहागया
"बांझ करकटी
नुहँई लंपट्टी
बोहू आडे तिनि पुअ"
=>बाँझ करकटी
न है लंपट्टी
बहू को तिन पुत्र
*जीव के तीन गुण
सत्व रज तम
ये तिन पुत्र बताये गये है ।
"पुअ बोहू दुहेँ एकत्र होइले
चर्तुवर्ग फळ पाइ"
=> पुत्र वधू दोनोँ एकत्र होनेँ
से चर्तुवर्ग फल मिले
*पुत्र अर्थात् परमात्मा एवं वधू यानी कि आत्मा के मिलन से चर्तुवर्ग फल मिलते है
"रघुनाथ दास भरसा करिछि
बोहू कु भेटिबा पाइँ"
=>रघुनाथ दास भरसा ( यहाँ ईच्छा ) कर रहा
बहू से मिले
* रघुनाथ दास यानी कवि स्वयं चाहते है कि वो बहू अर्थात् स्व_आत्म दर्शन करेँ ।
स्व आत्म दर्शन परमो भक्ति तथा योग सिद्धि से ही संभव
होता है ।
जो साधक स्व आत्म दर्शन कर लेता है
उनके
परमात्मा का दर्शन भी अल्प
श्रम से संभव हो सकता है ।
योग सिर्फ जीव के नवद्वाररुपी घर के लिए ही नहीँ
परमात्मा से संपर्क का द्वार भी उन्मुक्त करता है

मुझे वही रुप दिखाओ हरि - सालबेग

ମୋତେ ସେହି ରୁପ ଦେଖାଅ ହରି
ଜୟ ଶ୍ରୀରାଧେ ବୋଲି ଡାକେବାଂଶୁରୀ -2
मुझे वही रुप दिखाओ हरि
जय श्रीराधे कहे तोरा बांशुरी 2
ତ୍ରୀପାଦରେ ଦାନ ନେଇ ବଳି କି ପାତାଳେ ଥୋଇ
ଏଣୁ କରି ଶୁକ୍ର ମନ୍ତ୍ର ନୟନରେ କୁଶ ମାରି
त्रीपाद दान लैके बलि को पाताल मे किए उसे राजा
शुक्र मन्त्री बाधक बने
आँख फुटा मिली सजा
ମୋତେ ସେହି ରୁପ ଦେଖାଅ ହରି
ଜୟ ଶ୍ରୀରାଧେ ବୋଲି ଡାକେବାଂଶୁରୀ -2
मुझे वही रुप दिखाओ हरि
जय श्रीराधे कहे तोरा वांशुरी 2
କହେ ସାଲବେଗ ହୀନ
ଜାତୀରେ ଅଟେ ଯବନ
मैँ सालवेग हीन
जाती है यवन
କଂସ ଅଷ୍ଠମଲ୍ଲ ମାରି
କାହାକୁ ନ ଅଛ ତାରି
कंस अष्ठमल्ल मारे
सबको जग उधारे
ମୋତେ ସେହି ରୁପ ଦେଖାଅ ହରି
ଜୟ ଶ୍ରୀରାଧେ ବୋଲି ଡାକେବାଂଶୁରୀ -2
मुझे वही रुप दिखाओ हरि
जय श्रीराधे कहे तोरा बांशुरी ....
------भक्त कवि सालबेग----
***
मोगलकाल मे खासकर
साहजाहान के समय
श्रीक्षेत्र पुरी जगन्नाथ धाम पर
200 वर्षो तक मुस्लिम आक्रमण हुए
लेकिन 17वीँ सदी मे इस मुस्लिम भक्त ने
स्थानीय मुस्लिम शासकोँ को
अपने वस मे कर लिया था !
कहते है भक्ति मे अनन्त शक्ति होता है
सालबेग का श्रीकृष्ण भक्ति से पुरी जिल्ला शासनी ब्राह्मण
भी प्रभावित हुए थे
इतिहास साक्षी है
इस भक्त के आविर्भाव के बाद फिर कभी भी श्रीमंदिर पर हमले नहीँ हुआ