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सोमवार, 4 जुलाई 2016

बहू के चलना न आए जी...

बचपन मे नीचे लिखे भजन सुनके गुस्सा जाता था....
हूर्र ... ये भी कोई भजन है !!!
भगवन का स्तूति नहीँ
न गुणगान
अपने बोहू यानी पुत्रवधू के विषय मे अनाव सनाव कहागया है !!
लेकिन उम्र बढ़ने के साथ मैँ इसका असली अर्थ समझ पाया था !
‪#‎ विप्रश्री‬ ‪#‎ श्रीरघुनाथ_दास‬रचित
इस भजन मे ‪#‎ योग‬विषयक
हितवाक्य सरल भाषा मे कहा गया है ।
आर्त्तदास बनमाली दास आदि कविओँ के भजन मे योग मुख्य विषय रहा है
ऐसे ही एक भजन
Olata brukhye kheluchi lotani para
काफी प्रसिद्ध हुआ है ।
पैश है रघुनाथ दास जी के लिखे
वह भजन....
"बोहू चालि न जानई लो
पाद पड़ु अछि बंका
=>बहू (जीवात्मा) के चलना न आए जी
पद पड़त है बाँका
*मन से पराधीन जीव पाप कर्मोँ मे लिप्त है
"जेउँदिन बोहू चालि जानिजिब
घरे पड़िजिब डका"
=>जिसदिन बहू चलना जानजाए
घर मे हो जाए डका(सम्मान)
*व्यक्ति सदमार्ग मे चलना जान जाए तो सर्वत्र उसकी पूजा होगी
"जेउँ दिनुँ बोहू बापघरठारु
अईला ससुर घर कु"
=> जिस दिन बहू माईके से
लौटी ससुराल मे
*अर्थात परम् ब्रह्म से अलग
हो जीव जब संसार मे प्रकट हुआ
"आपणा पति र संगे संग नाहिँ
रसरे रसाए पर कु"
=>अपने पति के संगे संग नहीँ
रसमे रसाती दुजे को
*अपने पति अर्थात् परमात्मा को भूल कर जीव विषय भोग मे
लिप्त है
"पाँच भल लोक बुझाई कहिले
न बुझिला बोहू तिळे"
=>पाँच भले लोग समझाए
लेकिन मनाती नही बहू बिलकुल
*पाँच इंद्रियोँ के जरीये सच्चाई को जान कै भी जीव समझ नहीँ रहा
"अर्न पाणि बोहू किछि न खाईण
रहिछि शून्य़ आहारे"
=>अर्ण जल बिना बहू रह रही शून्य आहारे
*जीव के लिए जप तप हि असली आहार है
"पचिस नणन्द जंजाळ करन्ति
बोहू मोर बारुँआळी
=>पच्चीस ननन्द परेशान करती बहू मेरी झगड़ालु
*पच्चीस ननन्द यानी कि मानव सुलभ पच्चीस प्रकृति
से परेशान जीव दुनिया भर मे झगड़ा करता फिरता है ।
बोहू दूर्द्दण्डि सहि न पारइ
बुलइ पड़िशा ओळी
=> बहू दूर्द्दण्डी(उद्दण्डी) सह नहीँ पाती
घुमती पडोशीओँ कि मोहल्ले गली
*इंद्रय सुख तथा मन तोष के लिए
जीव चहुँ ओर दौडता रहता है
"बोहू गोटिक मुँ करि आणि अछि
खाउन्दा घर र झिअ"
बहू ऐके मेँ कर लाया हुँ
खानेवाले घर कि बेटी
*जीव मात्र मे खाते है फिन् शौच करते है
इसलिए ऐसा कहागया
"बांझ करकटी
नुहँई लंपट्टी
बोहू आडे तिनि पुअ"
=>बाँझ करकटी
न है लंपट्टी
बहू को तिन पुत्र
*जीव के तीन गुण
सत्व रज तम
ये तिन पुत्र बताये गये है ।
"पुअ बोहू दुहेँ एकत्र होइले
चर्तुवर्ग फळ पाइ"
=> पुत्र वधू दोनोँ एकत्र होनेँ
से चर्तुवर्ग फल मिले
*पुत्र अर्थात् परमात्मा एवं वधू यानी कि आत्मा के मिलन से चर्तुवर्ग फल मिलते है
"रघुनाथ दास भरसा करिछि
बोहू कु भेटिबा पाइँ"
=>रघुनाथ दास भरसा ( यहाँ ईच्छा ) कर रहा
बहू से मिले
* रघुनाथ दास यानी कवि स्वयं चाहते है कि वो बहू अर्थात् स्व_आत्म दर्शन करेँ ।
स्व आत्म दर्शन परमो भक्ति तथा योग सिद्धि से ही संभव
होता है ।
जो साधक स्व आत्म दर्शन कर लेता है
उनके
परमात्मा का दर्शन भी अल्प
श्रम से संभव हो सकता है ।
योग सिर्फ जीव के नवद्वाररुपी घर के लिए ही नहीँ
परमात्मा से संपर्क का द्वार भी उन्मुक्त करता है

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