श्री- लक्ष्मी वैभव ।
प्रभु आप जगन्मय जौति स्वरुप
,सर्व प्रकाश्य आप हीँ मेरे पथ पदर्शक !
ज– ज अर्थात् उत्पत्ति विष्णु पितामाता तेजः आदि ।
समस्त सृष्ठि के कारण आप प्रभु
जनार्दन
आप ही से सर्वदेवताओँ कि सृष्ठि !
प्रभु आप वेद मन्त्र योग तथा ज्ञान के आदि उत्पत्तिस्थल !
आप हीँ आराध्य देवता श्रीविष्णु
, हम समस्त प्राणीओँ के पितामाता !
ग– ग अर्थ गमन स्वर्ग गुरु आदि !
हे प्रभु आप अनन्त , सागर से भी गहरे है
गुलाब से भी कहीँ अधिक कोमल आपका हृदय । प्रभु आप हम सभी के गुरु
हमारे आश्रयदाता ज्ञानदाता ।
न्ना(न)– न अर्थात् निराकार निर्विकार निविनाशी स्थानातीत निर्माया निरीह निर्मल !
निराकार निर्गुण नित्य अविनाशी परमात्मा परमेश्वर के सगुण साकार रुप हीँ श्रीजगन्नाथ ।
थ– थ शब्द का अर्थ पर्वत,भयत्राता ,मंगल ,रक्षण आदि !
प्रभु ! आप अजेय हो अनाथोँ के नाथ भयनाशक सर्व मंगलकारक ।
बाढ़ ,चक्रवात ,विधर्मी आक्रमणोँ
तथा
मेरे अपने भाईओँ के षडयन्त्रोँ से हमारा रक्षा करनेवाले आप
सर्वजनमोही परमात्मा हो
आप ही हमारे एकता के प्रतीक हो प्रभु....
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