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मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

~~रामचंद्रदेव कि संघर्षगाथा~~


16वीँ सदी के बाद से जगन्नाथ मंदिर पर कईबार मुसलमानोँ ने हमला किया
और सबसे पहला हमला कालापाहाड/रक्तवाहु ने 1568 मे किया था !
तब से श्रीजगन्नाथ पुरी पर 168 साल तक विधर्मीओँ ने हमला किया परंतु हर बार आक्रमणकारी विधर्मी नाकाम रहे !
1733 मे ‪#‎ तकि_खाँ‬कटक के नाएव निजाम् बनकर आया और आते ही ओड़िशा मे नरसंहार लुटपाट का दौर शुरु हुआ ।
लेकिन उसके लाख प्रयत्न करने पर भी ओड़िआ लोगोँ का जगन्नाथ के प्रति आस्था ज्योँ का त्योँ बना रहा ।
जोरजबरदस्ती धर्मान्तरण करने हेतु जगन्नाथ को उत्कलीय जनता के मन से हटाना उसके लिये अति आवश्यक हो गया था ।
च्युँकि तृतीय अनगंभीम देव के बाद से श्रीजगन्नाथ ही ओड़िआओँ के असली राजा थे और
खोर्दा के राजा सिर्फ उनका प्रतिनिधित्व कर रहे थे ।
1733 मे ही उसने पुरी सहर पर हमला कर दिया तब उससे श्रीविग्रह को बचाने के लिये गजांम जिल्ला मे आठगड़ स्थित मारदा नामक जगह पर गुप्तरुप से छुपा दिया गया !
धर्मांध तकि खाँ पगला गया था वो गाँव गाँव छानने लगा ।
लेकिन वो जगन्नाथ को खोजने मे विफल रहा !!!
उधर वो कटक लौटा ही था कि खोर्दाराजा रामचंद्र देव
ने तकि खाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया !
ओड़िशा इतिहास मे 18वीँ सदी के राजा रामचंद्रदेव को एक कमजोर शासक मानाजाता है ।
परंतु उनकी संघर्षगाथा और जगन्नाथप्रीति उनके व्यक्तित्व को झुकने नहीँ देता ।
इस युद्ध मे रामचंद्र देव का जीत निश्चित था !
वो अपने सफल योजना तथा आतर्कित हमले के लिये शुरुवात से ही तकि खाँ पर भारी पड़ रहे थे ।
इतिहास साक्षी हे
‪#‎ हिन्दु‬किसीसे हारते है तो सिर्फ और सिर्फ ‪#‎ जयचंद‬जैसे लोगोँ के लिये ।
खोर्दा राज्य का सेनापति
‪#‎ वेणु_भ्रमरवर‬को राजगद्दी कि लालसा थी वो शत्रृओँ के साथ जा मिला !
एक विश्वासघाति सेनापति के वजह से
तकि खाँ के हातोँ रामचंद्रदेव बंदी बनाये गये ।
तकी खाँ चाहता तो रामचंद्र देव को वहीँ मार सकता था परंतु उसने सोचा ..,
यदि उत्कल का राजा ही मुस्लिम बनजाएगा तो उसके देखादेखी बाकि लोग भी इस्लाम धर्म अंगिकार कर लेगेँ..,
उसने रामचंद्र देव के आगे एक संधि का प्रस्ताव रखा
संधि के मुताबिक राजा को "ईस्लाम धर्म कबुल करने तथा तकी खाँ कि बहन ‪#‎ रजिआ‬से शादी करना था !!!
राजा विवश थे या दूरद्रष्टा !
जो भी हो बिना माँगे उन्हे एक और मौका मिल रहा था ।
उन्होने कुछ सोचते हुए संधि का प्रस्ताव मान लिया ।
ईस्लाम कबुल करते हुए तबसे वो ‪#‎ हाफिज_कादर_वेग‬कहलाये ।
राजा खोर्दा लौट आये ..,
रामचंद्र देव खोर्दा लौट आये !
खोर्दा लौटने पर तकी खाँ और अमिन चाँद कि सभी चालोँ को नाकाम करते हुए रामचंद्र देव ने ओड़िशा के प्रायः सभी सामन्त राजा व जमिदारोँ को इकट्ठा किया ।
धर्मिय भावावेग मे
राज्य के सभी पाइकवीर एकजुट हुए और एक सशस्त्र शोभायात्रा मे जगन्नाथ बलभद्र व सुभद्रा कि प्रतिमाओँ को चिलिका के मध्य स्थित गुरुवरदाई द्वीप से पुरी जगन्नाथ मंदिर लाया गया था !
बाद मे तकि खाँ का फिर कभी हिम्मत नहीँ हुई जगन्नाथ मंदिर पर हमला करने कि......
- - - - - - रामचंद्र देव मुस्लिम बनने के बाद भी जगन्नाथ जी के भक्ति मे
ड़ुबे रहते थे !!!
परंतु अब उनके लिये जगन्नाथ मंदिर मे प्रवेश निषेध हो गया था ।
बड़े बड़े पण्डितोँ मे कई वाद विवाद के बाद ये निष्कर्ष निकाला गया कि अन्य संप्रदाय के लोग सिँह द्वार से जगन्नाथ जी को देख सकेगेँ.....
खास रामचंद्र देव के लिये सिँहद्वार का खास गेट बनाया गया और उसका नाम रखा गया पतितपावन.....
आज भी यहाँ से किसी भी संप्रदाय का व्यक्ति भगवन का दर्शन कर सकता है
------- प्रसिद्ध ओडिआ कथाकार व राजनेता ‪#‎ सुरेद्र_महान्ति ‬जी ने प्रसिद्ध
‪#‎ नीलशैल‬व ‪#‎ निलान्द्रीविजय‬
उपन्यास के जरीये रामचंद्र देव कि संघर्षमय जीवन कि वर्णना किया है ।

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