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शनिवार, 24 अक्टूबर 2015

करकण्डु उपाख्यान -ओड़िशा का चांडाल राजा कथा

चंपा नगर के राजा दधिवाहन व रानी इंद्रावती पश्चिमी ओड़िशा के जंगलोँ मे आखेट पर आये थे और वहाँ एक खुँखार वाघ ने उनका रस्ता रोका ..
वाघ से भयभीत हो रानी बीना सोचे समझे जंगलो मे भागने लगी और थोड़ी ही देर मेँ खोओ खयी !

राजा ने बहुत ढ़ुंडा परंतु रानी की कोई खोज खबर नही मिली सो निराश हो राजा दधिवाहन चंपानगर लौट गये !

* उन दिनोँ एकवस्त्रधारी जैन साधु #पार्श्वनाथ ओड़िशा आये हुए थे ! उनके प्रभाव से यहाँ के जंगलोँ मे जैन धर्म अनुयायी सन्यासी सन्यासीनी जप तप मेँ लगे हुए थे !

जंगलोँ मे एकाएक मिलजानेपर एक जैन सन्यासीनी ने भयातुर चंपाराजरानी को जैन साध्वी मठ मेँ आश्रय दिया !

उस समय रानी गर्भवती थीँ....

जब साध्वी सन्यासीनीओँ को ये बात ज्ञात हुआ तो कुछ साध्वीओँ ने माया मोह से बचने हेतु रानी को मठ से चलेजाने को कहा !!
हालाँकि कुछ साध्वीओँ के समर्थन मिलने पर रानी मठ मे रहने लगी और जैनधर्म अनुसार जीवनयापन करने लगी !

शर्त के मुताबिक राजपुत्र के जन्म होते ही उसे एक चंडाल दंपत्ति को सौँप दिया गया !

चंपानगर कि राजपुत्र का बचपन मे च्युँकि #चंडालदंपत्तिओँ ने पालनपोषण किया था उन्हे उतना पौष्टिक तत्ववाला खाना नहीँ मिला
वो राजपुत्र #कण्डु रोग से पीडित हो गया था और इससे जंगली अधिवासीओँ ने उसका नाम #करकण्डु रखलिया !

युवावस्था को प्राप्त होनेपर करकण्डु ने उस जंगल पर अपना एकाधिपत्य करना शुरुकरदिया !
एक दिन चंपानगर राजा के कुछ लोग जंगलोँ मे करकण्डु द्वारा बंदी बनाये गये.....
राजा ने बागी को दंडित करने के लिये जंगलोँ मे उससे युद्ध करने का फैसला किया ...

पितापुत्र मेँ भीषण युद्ध छीड गया ....

जब रानी इंद्रावती को मठमेँ इस घटना का पताचला वो भागी भागी आयी उन्होने अपना व करकण्डु का परिचय देते हुए युद्ध रुकवाया !

चंपानगर के राजा दधीवाहन ने अपने पुत्र को ओड़िशा के उसभाग का राजा बनादिया ....
आगे चलकर करकण्डु ने इस क्षेत्र मे जैनधर्म का प्रचार पसार करवाया च्युँकि उनकी माताको विपत्ति मे जैनसाध्वीओँ ने शरण दिया था !

**> करकण्डु को याद रखने के लिये #जगन्नाथ #पुरी मे #रथयात्रा पर राजा द्वारा #छेरा_पहँरा किया जाता है । इसके तहत तत्कालीन पुरी राजा को तिनोँ रथ मेँ सोने कि झाडु से सफाई करने का परंपरा प्रचलित है...ये करकण्डु #Odisha के वही प्राचीन चाँडाल राजा थे जिन्होने यहाँ जातिगत उदारीकरण व समन्वयता कि नीँव रखी थी ....

[ये कथा "Odisha oo jaindharama" ओड़िआ किताब से लियागया है
अगले हफ्ते इसी कड़ी मे
महामेघवाहन ऐरपुत्र खारवेल कि जीवनी प्रकाशित करुगाँ ]

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