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बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

----कल्पलता --- दो प्रेमीओँ की कहानी

---------कल्पलता-----------
----कवि #अर्जुन_दास----
----हिन्दी भावानुवाद----

---स्वर्ग लोकमे वसन्तक गंधर्भ को सुरेखा अपसरा से प्रेम हो गया था....
एक दिन जब वे परस्पर वार्तालाप मे मग्न थे देवराज
इंद्र ने सुरेखा को नृत्य हेतु स्मरण किया ।

वसन्तक से रहा न गया वो भी इंद्र सभा मे जा पहँचा !!
वसन्तक को अपने सम्मुख देख सुरेखा के नृत्य ताल मेँ भूल चुक होने लगी ।
इंद्र त्रिकालदर्शी है ही उन्होने ध्यानमग्न हो सब जान लिया !
इंद्र ने स्वर्ग का नियम तोड़ने के लिये
गंधर्भ वसन्तक व सुरेखा अपसरा को धरती पर मनुष्य योनी मे जन्म लेने का श्राप दे दिया ।
इस अप्रत्याशित श्राप से व्यथित हो दोनोँ ने देवराज कि स्तूति कि
इंद्र शान्त हुए उन्होने
कहा
हमारा श्राप अव्यर्थ है परंतु हम तुम दोनोँ को आशिर्वाद देते है कि तुम जातिस्मर होगे तथा राजघराने मे ही तुम दोनोँ का जन्म होगा ।
श्राप प्रभाव से वसन्तक का #वल्लाळदेश मे विध्या विनोद के यहाँ जन्म हुआ और
उसका नाम रखा गया #अमरशिखर ।

उधर सुरेखा अप्सरा का जन्म
#कर्णाटदेश मेँ धर्मध्वज के घर पर हुआ । उसे संसार मेँ कल्पलता के नामसे जाना गया !
राजकुमारी कल्पलता नित्य कृष्णावेणी नदी मे स्नान कौतुक आदि हेतु अपनी सखी मदनमत्ता के साथ जाया करती थीँ !

एक दिन आखेट मे गये अमर शिखर ने
#सर्वेश्वरयोगी जी के आश्रम मे कल्पलता का तैलचित्र देखा था.....
उस चित्र को देखकर उन्हे पूर्वजन्म कि बातेँ याद आने लगी ! ऋषि सर्वेश्वर से पताचला कि यह तैलचित्र उन्हे कर्णाट राजकुमारी ने भेँट दिया था ! तब
अमरशिखर ने तय किया कि वे छद्मरुप धारण पूर्वक कर्णाट देश जायेगेँ ।

उधर राजकुमारी कल्पलता के लिये उसके परिवार जन उत्तम वर पात्र खोजने मे लगे हुए थे ।

कर्णाट देश राजा ने अपने पुत्र #प्रताप_पचाँनन को उत्तम वर उन्वेषण हेतु भेजा ।
युवराज प्रताय कई देश देखते देखते #चोड़_देश मे जा पहँचे ।

चोड देश के घन जंगलोँ मे युवराज प्रताप को वाघोँ के झुँड़ का सामना करना पड़ा !
अदम्य साहस का परिचय देते हुए वनविहार हेतु आये चोड़ देश राजकुमार #अवनीतिलक ने उन्हे उस विपत्ति से उद्धार किया....

कर्णाट देश लौट कर युवराज प्रताप ने अवनीतिलक और उनके प्रराक्रम कि कथा कह सुनाया । युवराज ने आगे कहा बहन कल्पलता के लिये वे ही उपयुक्त वर होगेँ !
राजदंपत्ति भी राजी हो गये
परंतु
राजकुमारी कल्पलता चुप रही और अपनी भवन मेँ लौट गयी !
राजकुमारी जन्म से हि जातिस्मर थीँ अतः दिन प्रतिदिन वह प्रिय प्रेमी वसन्तक के विरह अग्नी मे जलती रही ! मन के लिये विरह कि ज्वाला भी कम विषैला नहीँ होता ! ताकतवर इंसान भी मनोवल टुटने पर हारजाता है ।

तय दिन जब सब लोग विवाह आयोजन मे लगे हुए थे राजकुमारी कल्पलता ने विष पान कर लिया ।
वो अपने मन को जीत नहीँ पाई ....

राजकुमारी के मृत्यु से फुलोँ से सज्जा चलचंचल राजभवन कुछ ही क्षणोँ मेँ श्रीहीन निस्तब्ध रहगया !

भारी मन से कर्णाट राजा राजकुमारी कल्पलता का अन्तिम संस्कार कृष्णावेणी नदी तट पर संपन्न करने के लिये तैयारी करने लगे !

चिता तैयार हो गया था....

राजा मृत शरीर पर अग्नी संजोग करनेवाले थे कि तभी एक युवक कि गुरुगम्भीर स्वर सुनाई देने लगा !
रुको....रुक जाओ....

वह अपरिचित युवक नजदीक आया.....

उसने सर्त रखा वो राजकुमारी को जीवित कर देगा बदले मे राजा को उसी के साथ राजकुमारी कल्पलता का विवाह करना होगा ।

कर्णाट राजा धर्मध्वज बिना सोचे समझे पुत्रीमोह के चलते उसके बात से राजी हो गये !

जातिस्मर होने हेतु अमरशिखर को सभी दैवी शक्तिओँ का ज्ञान था !
छद्मवेशधारी अमरशिखर ने महामृत्युजंय मंत्र द्वारा राजकुमारी को पुनःजीवित किया !!

राजकुमारी आँख मलते मलते उठी और उन्होने अमर शिखर को पहचान लिया !!!

उधर चोड़देश राजा को जब पता चला कि कर्णाट राजकुमारी जीवित है और किसी और से विवाह कर रही है वो दल बल लेकर कर्णाट देश कि और कुच कर गये ।
कर्णाट देश व चोडदेश के बीच भयानक युद्ध हुआ
कर्णाट देश को हारते देख
छद्म भेषी राजकुमार अमर शिखर ने अपना असली परिचय दिया...

अब बल्लाल देश व कर्णाट देश कि सम्मिलित सेना के आगे हार कर चोड़राजा स्वदेश लौटे !!!

बल्लाल देश राजपुत्र ने हालाँकि और कुछ दिन कर्णाट देश मे बिताना चाहा...

समुचे राज्य मे एक अजीब तरह के आनंद का अनुभव किया जा रहा था ।

कर्णाट देश मे राजकुमारी का जीवित हो जाने तथा युद्ध मे अप्रत्याशित विजय से सब खुश थे !!

एक दिन राजपुत्र अमर शिखर व कर्णाट राजकन्या स्व भवन मेँ जलक्रिडा कर रहे थे कि एकाएक
अमर शिखर उन्ही जल मे अदृश्य हो गये ।

चहुँओर खोजपड़ताल के बाद भी अमरशिखर नहीँ मिले
राजकुमारी कल्पलता ने अन्नजल त्याग दिया उसने चिताग्नी मे आत्मदाह करने कि व्रत रख ली....

पिता धर्मध्वज ने राजकुमारी को रोकते हुए उससे आठ दिन तक रुकने को कहा....
देखते देखते आठ दिन भी बीतगया परंतु अमरशिखर का पता न चला....

आठवेँ दिन कि समाप्ति होते ही
राजकुमारी कल्पलता चिताग्नी मे जा बैठी....

आग लगाया गया परंतु जला नहीँ
मेघ ने कल्पलता का जलाभिषेक किया और आकाशवाणी हुआ

हे सुरेखा मेँ तुम्हारे निष्ठा से प्रसन्न हुआ...
तुम्हारी परीक्षा लेने हेतु मैनेँ ही नागकन्याओँ द्वारा वसन्तक का अपहरण कर लिया था
मे उसे तुम्हे लौटा रहा हुँ
तुम दोनोँ कि प्रेम काहानी
सदैव अमर रहेगी
जो इस पवित्र कथा को कहेगा पढ़ेगा या पढ़सुनाएगा उसका प्रेम सफल हो जायेगा !!"

[कल्पलता काव्य कि कथा कल्पनीक है इसका कोई भी पौराणिक संदर्भ नहीँ मिलता परंतु ऐतिहासिक संबध है !
पंद्रहवीँ सदी से पूर्व दक्षिणभारतीय साम्राज्योँ मे आपसी कलह को दर्शाता है ये कथा ! ओड़िआ कवि अर्जुन दास ने इसे पंद्रहवी से पहले या बाद मेँ लिखा होगा हालाँकि आजतक उनका सठिक जीवन काल निरुपित नहीँ हो पाया है ! ज्यादातर ऐतिहासिक उन्हे पंद्रवी सदी का मानते है ]
#Kalpalata
#OdiaPoem
#ArjunDas

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