आज से करिबन 1000 साल पूर्व #कटक सहर कि स्थापना #केशरी_वंश के राजा #मर्कत_केशरी द्वारा करवाया गया था ।
कटक चौतरफा नदीआँ से घिरा हुआ था इसलिये इसे एक सैन्य छावनी के रुप मे #उत्कलीय राजाओँ द्वारा उपयोग मे लाया गया ।
कटक सहर वसाये जाने के बाद देखा गया यहाँ #बरसात के दिनोँ मे #बाढ़ से काफी जानमाल कि क्षति होने लगा । कई भी बुद्धिजीवि इस समस्या का हल नहीँ कर पा राहा था । कटक सहर को बाढ़ से बचाने के लिये सारी योजनाएँ नाकाम साबित हुई ।
राजा मर्कत केशरी एक दिन अपने वागोँ मे टहल रहे थे उन्होने देखा साधारण वेशभुषा मेँ एक ग्रामवासी उन कि और आ रहा है । हाथ मे रुपियोँ की थैली पकड़े हुए उस व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा
'हे राजन । मेँ #विडानसी ग्राम का रहनेवाला एक मामुली शिल्पकार #वाइधर_मुण्डि हुँ....
मेँ यह देख कर अत्यन्त उत्साहित हुँ कि आप इस प्रान्त कि समस्याओँ पर चिन्तित है और कुछ करना चहते है ।
मैनेँ अपनी जीवन भर कि कमाई यही सोचते हुए सँचित कर रखा था कि भविष्य मे इस क्षेत्र के चहुँ और एक पथ्थर का दिवार/बांध बना सकुँ..,....
आज मे वो संचित धन आपको सौँप रहा हुँ...
मुझे उम्मिद है आप जरुर इस समस्या को सुलझा लेगेँ ।
राजा मर्कत केशरी पहले तो हैरान हुए फिर उन्होने उस ग्रामवासी शिल्पकार कि योजना सुनी और वे अंततः वाइधर मुण्डि से काफी प्रभावित हुए ।
सन् 1006 मे कटक के चहुँ और राज आदेश से पथ्थर के दिवार बनाया गया जिससे काफी हदतक बाढ़ आदी पर काबु किया जा सका ।
बाद मे इस पथ्थर दिवार को #मराठा व #अंग्रेजोँ ने और बढ़ाया ।
वाइधर मुण्डि को आम बोलचाल मे लोग #वाइमुण्डि कहते है
उनके नाम से एक कहावत भी प्रचलन मे है
"KATAK CHINTA BAIMUNDI KU"
यानी कटक कि चिन्ता वाइमुण्डि को है !!
अर्थात् अपने देश कि बुरेभले कि चिन्ता एक राष्ट्रवादी को ही रहता है
बाकी यहाँ रोज नाहाने खाने हगने वाले बहत है । :-D :-D :-D
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