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मंगलवार, 22 सितंबर 2015

ओड़िशा के जनसृतिओ मे रामानुजन्....

परम वैष्णव श्रीरामानुजाचार्य जी द्वारा ख्रीस्तिय एकादश सदी के अन्तिम दशक मे वैष्णव धर्म प्रचार के लिये समुचे भारत का दौरा किया गया ।

इस विषय मे स्थानीय लोगोँ मे एक जनसृति प्रचलित हुआ

उत्तर भारत से लौटते समय श्रीरामानुज उड्र उत्कल व कलिंग प्रदेश आये ! यहाँ उनके सेवकोँ कि जीवनचर्या व उपासना पद्धति देख वे असन्तुष्ट हुए । रामानुचार्य द्वारा स्थानीय राजाओँ कि सहायता से सेवकोँ की पूजाविधि व जीवनचर्या वदलने का उद्यम किया गया । परंतु उत्कलीय सेवकोँ को यह परिवर्तनवाली बात पसंद नहीँ आयी !
तब श्रीरामानुजाचार्य ने नये सेवकोँ कि नियुक्ति कि !
इससे पिड़ित पुरातन सेवकोँ ने श्रीजगन्नाथ जी के निकट इसका घोर प्रतिवाद किया ।

स्वप्नादेश के जरीये श्रीरामानुजन् को इस परिवर्तन नीति से दूर होने को कहा गया ।
परंतु श्रीरामानुजन् पर इन बातोँ का कोई प्रभाव नहीँ देखागया । वे संस्कार कर्मोँ मेँ और अधिक संलग्न हो गये । जगन्नाथजी ने तब अपने गरुड को यह निर्देश दिया कि
"शयनरत्त अवस्था मे रामानुजन् को श्रीकूर्मम् पर छोड़ आओ" । सुबह उठकर श्रीरामानुजन् ने खुदको शिवलिँग पूजित क्षेत्र मे पाया ।
वे परम वैष्णव थे अतः उन्होने शिव उपासना नहीँ कि न शिव प्रदत्त खाद्य द्रव्य ग्रहण किया ।
उन्होने वहाँ विष्णु नाम उच्चारण के साथ उपवास रखा ।
रात मे रामानुजन् को स्वप्नादेश हुआ कि

'सेवकोँ द्वारा गलति से श्री विष्णु के कूर्म अवतार को शिवजी समझकर पूजा जा रहा है । अतः उन्हे श्रीकूर्मम् का वैष्णव विधि मे उपसना करना चाहिये ।

तब श्रीरामानुजन् ने श्रीकूर्मक्षेत्र को विष्णु कूर्मनाथ क्षेत्र मेँ बदलने के साथ साथ स्थानीय राजा को भी वशीभूत कर वैष्णव बनाया !!!

Dr. Gaganedra nath das ने इस जनसृति पर राय देते हुए अपनी अंग्रेजी प्रबन्धं The Evolution of the Priestly power : The gangavamsa period,"the cult of jagannath and the regional tradition of orissa " (CJRTO ,Page.158 मेँ भी प्रकाशित ) मे कहा..

"It seems that Ramanuja ,with the support of the ruling mon-arch in the control of puri tract ,tried to introduce brahmanic mode of worship at the shrine of Lord Jagnnath in Puri . But the priests who were not adept at Brahmanic rites-were unable to adopt it.when Ramanuja,determined to carry on his reform proposals and engaged a new set of brahmin priests , the opposition from the Non Brahmin priest was Vehement. in the face of their fierce resistance in spite of the possible support of the monarch in control of the puri tract, ramanuja had to abandon his attempt.'

इस जनसृति को समाज मे रामानुजपन्थीओ ने ही प्रचारित करवाया । हालाँकि ये घटना श्रीरामानुजन कि पुरी क्षेत्र मे जगन्नाथजी को पूर्ण वैष्णव बनाने कि प्रयासो कि विफलताओँ का प्रमाण है । परंतु इस जनसृति को प्रचार करने के पिछे रामानुजपन्थीओँ का श्रीकूर्मम शैव पीठ को विष्णु मंदिर मे बदलने कि गहरी चाल छुपी हुई थी ।

श्री रामानुजन द्वारा पुरी पर्यटन करने की सपक्ष मेँ कई प्रमाण व तथ्य है ।

1.श्री जगन्नाथ व बलभद्र जी के मस्तक मे लगाये जानेवाला पवित्र चिन्ह रामानुजपन्थीओँ की कपाल चिन्ह से सामजस्य !!
2. पुरुषोत्तम क्षेत्र से 16 किलोमिटर दूर स्थित आलारनाथ मंदिर आता है ।
रामानुज जी का दक्षिण भारत के अलवार के प्रति प्रवल सम्मान हुआ करता था । संभवतः इस जगह पर रहकर रामानुजाचार्य ने वैष्णव धर्म प्रचार कि होगी ।
इससे अलवार नाम प्रचलन मे आया व किम्बदन्ती बनगया । बादमे चोड़गंग देव के द्वितीय पुत्र राजराज देव ने यहाँ एक मंदिर निर्माण करवाया नाम रखा गया आलार नाथ !!
3.पुरुषोत्तम क्षेत्र मे स्थित एमार मठ श्रीरामानुज संप्रदाय से आज भी जुड़ा है ।
इसका संपूर्ण तामिल नाम है
#इम्_पेरु_मन्_आर् (रामानुज जी का अन्यनाम मन्मथ का परिचय दे रहा है)
पहले इस मठको स्थानीय लोग #इम्बार कहते थे अपभ्रंस हो ये शब्द अब #एमार हो गया है ।

विशिष्ट ऐतिहासिक गगनेन्द्र नाथ दास के हिसाब से 1096 ख्रीस्ताव्द मे श्रीरामानुजन् ने श्रीक्षेत्र का दौरा किया था
परंतु सटिक समय निर्धारण पर ऐतिहासिक तर्कवितर्क हेतु यह तय करपाना एक मौलिक विवाद है ।


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