१८६५ में घुमुसर रियासत(गंजाम जिला) में आदिवासियों ने स्वतंत्रता संग्रामी
कमलोचन विशोई के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया था....
कंध आदिवासियों के जंगल अधिकारों पर पाबंदी लगाकर अंग्रेजी सत्ता ने आष्ट्रिक जातियों को विद्रोही बनादिया था....
ये विद्रोह गंजाम,गजपति,रायगडा, कंधमाल जिलों में फैलता गया....
विभिन्न जगहों में सेंकडो अंग्रेज सैनिक व उनके समर्थकों को मारा गया
सिर्फ घुमुसर में ही एक लडाई में २ राज्यकर्मियों समेत ४८ अंग्रेज सैनिक मारेगये ....
उस दिन तो वहां से अंग्रेज दुम दबाकर भाग निकले.....
लेकिन बाद में कैप्टन् Edward russel के नेतृत्व में अंग्रेज सैनिक बहुत से कंध आदिवासियों को निर्ममता से हत्या करने लगे....
बच्चे बुढे औरत जो भी आदिवासी उनके सामने आ जाता वो मारा जाता....
कोई दया नहीं कि नीति पर थी कंपनी सरकार....
इस बीच विद्रोह ओर भी उग्र हुआ.....
दोरा विशोई कमलोचन जब अनगुल में थे वहां के स्थानीय राजा सोमनाथ सिंह ने उन्हें अंग्रेजों के हाथों पकडवा दिया.....
दोरा विशोई कमलोचन मृत्यु पर्यन्त मांद्राज के गुटि में जेलदंड भोगते रहे ओर मातृभूमि से दूर उनकी मृत्यु हो गई थीं.....
हालांकि दोरा विशोई के पकडे जाने पर भी कंध विद्रोह थमा नहीं था....
१८४६ में इस विद्रोह का नेतृत्व किया कमलोचन के भाई के पुत्र चक्रा विशोई नें....
लेकिन तब तक कंध आंदोलन दिशाहीन हो गया था....
कंध अब समतल अंचल के स्थानीय अधीवासियों पर भी आक्रमक रवैया अपना रहे थे ।
च्युंकि कंधों के भूमिओं को छिनकर अंग्रेज उन भू-भागों को अपने गोरचटे साहुकार व्यापारीओं दे रहे थे.....
तो उनपर
गाज तो गिरनी ही थी
ओर जब गिरी ज़ोरदार गिरी .....
तब कंपनी सरकार ने उन विद्रोहीओं को सबक सिखाने के लिए
पहले
Captain Mcpherson ओर बाद में Brigadier General Dice को नियुक्त किया था .....
१८४६ से १८५४ तक चले कंध आंदोलन को कुचलने के लिए दोनों अफसर कैप्टन एडवार्ड रॉसेल से भी बर्बर बने.....
लाखों आदिवासियों को बेहरमी से मार दिया गया....
कभी ढेंकानाल अनगुल क्षेत्र जिन शबर कन्ध आदिवासियों की लाखों वर्षों से मूल हुआ करती थी अब यहां आदिवासी अल्पसंख्यक रह गये है....
खैर अंग्रेज आखरी दम तक लगे रहे लेकिन
कभी भी चक्रा विशोई को जीवित नहीं पकड़ पाये
जबतक जीवित रहा वह वीर लड़ता रहा.....
आज ये देख कर दु:ख लगता है कि ऐसे वीरों को उसके अपने लोग ही नहीं जानते है....
क्या उनका विद्रोह विफल गया ?
शायद नहीं
च्युंकि वह आज भी यहां के मिट्टी में खुन बनकर ही सही है ओर रहेंगे सदा हमारे हृदयों में....
#बंदेमातरम्
#बंदेउत्कलजननी
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