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गुरुवार, 24 अगस्त 2017

ओडिशा विभाजन चाहना ओडिशा को गरीब बनाए रखने जैसा है

ओडिशा का विभाजन संभव नहीं है
यह तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है।
तुम पूछोगे क्यों?
ऐसा इसलिए है
क्योंकि कोशल एक ऐतिहासिक भौगोलिक इकाई के रूप में आधुनिक ओडिशा से बहुत दूर है....

जो जमीन ओडिशा का हिस्सा नहीं है, आप इसे कैसे विभाजित कर सकते हैं.....

केवल कोशल राज्य के नाम पर तो बिल्कुल नहीं च्युंकि पौराणिक मिथकों के आधारों पर इतिहास व कानुन यकीन नहीं रखता ।
ओर यदि माना भी जाय तो कोशल राज्य उस समय समुचे उत्तर भारत में फैला हुआ था ऐसे में इसे भारत के सभी हिंदीभाषी कैसे स्वीकार कर लेंगे ।
पौराणिक आख्यानों के मुताबिक कोशल राज्य के दो टुकड़े हो कर के एक दक्षिण कोशल बनगया था.....
ओर ये दक्षिण कोशल दरसल आजका छत्तीसगढ़ ही है लेकिन कुछ ओडिशा के पश्चिमी भू-भागों को भी कोशल बताते फिर रहे है जो कि एक संघराज्य में किसी क्षेत्र विशेष के स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है ।
कानुनन यह असंवैधानिक कृत्यों में से एक है !

ओडिशा के पश्चिमी भाग तो प्राचीन काल से ही कॉलिंगदेश के हिस्से रहें है ।
स्थानीय लोगों के जीवन को नष्ट करने और कुछ अनैतिक गुटों की ओर से उनके जीवन पर नियंत्रण हासिल करने के लिए एक राजनीतिक साजिश चलाया जा रहा है, ओर षडयन्त्र रचनेवाले सुत्रधर ओडिशा से नहीं है
लेकिन उन मदारीओं ने ओडिशा में कुछ बंदरों को पाल रखा है .....
जब उन्हें नाच देखना होता है
उनके तथाकथित कोशली बंदर जमकै नाच लेते है !!!!

चलो फिर भी ओडिशा के पश्चिमी हिस्सों को वर्तमान ओडिशा राज्य से विभाजित करने के विषय पर विचार करते है ....

आप मेरा यकीन किजिए, अगर ऐसा हुआ तो यहां पश्चिम ओडिशा में रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए यह एक आपदा होगा.....
आप पूछोगे कैसे ?
आइए हम इसका विश्लेषण करें:

१.पहली बात तो यह होगा कि यदी कोशल के नाम पर ओडिशा का विभाजन हुआ तो वो  landlocked हो जाएगा ।
उत्कल के पास सारे पोर्ट होगें ओर
इससे पश्चिमी ओडिशा के व्यापारी तथा व्यापार दोनों ही प्रभावित होंगे !
२.ओडिआ लोग सबसे ज्यादा संबेदनशील होते है एक ओडिआ होने के नाते मुझे इस बात का एहशाश ओर यकीन है ।
यदि ओडिशा का विभाजन होता है तो दोनों क्षेत्रों के लोग एक दूसरे से नफ़रत करेंगे !
नफ़रत के वजह से पश्चिमी ओडिशा के लोग जगन्नाथ संस्कृति को त्याग देंगे ओर इस तरह से वहां वर्षों से जगन्नाथ संस्कृति के कारण पैर टिका न पानेवाला ख्रिस्तीआन् धर्म क़ायम हो जाएगा !!!!!

३. दोनों ही भू-भागों में नफ़रत के कारण आपसी झगडे चरम होगें
ओर मामला ज्यादा बिगड़ी तो गृहयुद्ध तक भी हो सकती है । आपसी घृणा व द्वेष के कारण दोनों ही भू-भागों में विकास नहीं हो पाएगा ओर दोनों क्षेत्रों को भारत के सबसे निचले स्तर पर रहना होगा.....

४.
कोशल खुद राजनीतिक रूप से अस्थिर हो जाएगा क्योंकि इसके लिए लड़ रहे लोगों ने अभी तक अपनी सीमा निर्धारित नहीं की है। कुछ नक्शे में, उन्होंने अनुगुल, कलाहांडी, कोरापुट जिले कोक्षशामिल किया है।
इनमें से कोई भी उन्हें शामिल होने में रुचि नहीं रखता है।
प्रो-कोसाला ग्रुप ने पहले स्थानीय लोगों से नगण्य सहायता के साथ-साथ विभिन्न अभियानों का आयोजन किया था, यहां तक ​​कि आंदोलन के केंद्र संबलपुर में भी खुब हो हल्ला मचाया था । लेकिन अंततः उसी संबलपुर में लोगों ने उनको झाडु मार मार कर भगदिया तो ये लोग आजकल बरगढ़ में कोशल कैंप चला रहे है ।
५.पश्चिमी ओडिशा से ओडिआ भाषाका जन्म हुआ ! पूरब ओडिशा के लोग संस्कृतभाषी ही थे कुछ लोग पाली भी बोला करते थे !!!!
सातवीं सदीमें संबलपुर क्षेत्र में उड्डीयान बौद्ध राज्य स्थापित होने के बाद वहां के सराह प्पा, कान्हु प्पा,लुई प्पा जैसे बौद्ध संन्यासीओं ने
उनके स्थानीय भाषा (ओडिआ) में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था जिससे संपूर्ण भारत प्रभावित हुआ था !!!!
इससे प्रभावित होकर पूर्व ओडिआ क्षेत्रों में पश्चिमी ओडिआ या उडि्डयन भाषा के साथ पाली, द्रविड़, आदिवासि तथा संस्कृत जैसे भाषाओं के मिश्रित ओडिआ भाषा का जन्म हुआ था । तो
यह इतिहास स्पष्ट रूप से एक संकेत है कि वहां रहने वाले लोग हार्ड कोर ओडिआ ही
हैं संबलपुरी नृत्य और संबलपुरी साड़ी ओडिसी और मणिवन्द साड़ी जितना ही लोकप्रिय रहा है ।
६.
राज्य सरकार की अनुदान पर रोना उतना सच है जितना यह झूठ है ओडिशा के पश्चिमी जिलों के सभी अनुदान संबलपुर-झारसुगुडा बेल्ट में केंद्रित हैं, इस प्रकार इसी क्षेत्र में अन्य जिलों की खराब स्थितियों को कम नहीं किया जा रहा है।
इस प्रकार, उनके हिस्से को खाए जाने वाली संस्था में शामिल होने के लिए उनके पास कम झुकाव है। बहरहाल उनके जितना ही गरीब पूर्व ओडिआ लोग भी है !!!! दोनों ही तरफ लुट तो नेता ओर बाहरी लोग ही रहे लेकिन दोष मात्र पूर्व ओडिआ लोगें के मत्थे ही मढ दिया जाता है ।

७.
एक शब्द के रूप में 'कोसल' का ओडिशा के पश्चिमी क्षेत्रों का कोई संबंध नहीं है।
हम कभी भी "कोसाली भाषा", "कोसाला डांस", "कोसली साड़ी" नहीं कहते हैं यह हमेशा "संबलपुरी भाषा", "संबलपुरी नृत्य", "संबलपुरी साड़ी" रहा है। आज से महज़ २० साल पहले कोशली नाम से कुछ न था.....
दरअसल​ ओडिआ भाषा में कोशली शब्द का अर्थ नाव से संबंधित है । ओडिशा में एक खास तरह के छोटे नावों को ही कोशली कहजाता था !!!!

८.भाषा के नाम पर ये लोग अलग राज्य बनाना चाहते हैं । लेकिन
संबलपुरी भाषा जिसे बंदरों ने कोशली कहना शुरू किया है वास्तव में स्वयं की एक अलग भाषा नहीं है। यह ओडिया  का अन्यतम बोली है !!!!!
दरअसल, संबलपुर और सुंदरगढ़ में बोले जाने बोली सामान्य भिन्न होता है ओर ऐसी भिन्नताएं गंजाम में भी है बालेश्वर में भी है ....
ओडिशा के हर क्षेत्र में कुछ कुछ खास शब्द प्रचलित है जो एक दुसरे से भिन्न होते है लेकिन यह शब्द भिन्नताएं नगन्य ही है लेकिन सभी ओडिआ बोलीओं में आपसी समानताएं प्रबल है । सिर्फ शब्दों के भिन्नताओं के लिए एक संस्कृतीवाली भू-भाग को बांटना न्याय संगत नहीं है ।
ऐसे शब्द भिन्नताएं ओडिशा के हर हिस्से में है ।

उदाहरण के लिए जाजपुर क्षेत्र में कछुआ को “kachhima” कहा जाता है, लेकिन ओडिशा के बाकी हिस्सों में  “Kainchha” है कही कहीं कंछिअ भी कहते है !!!!
क्या के लिए ढेंकानाल में किरा कहते है तो बालेश्वर में किस , गंजाम जिले में किअण ओर संबलपुर में केन्ता .....

तो सच्चाई तो यही है कि
यह छोटे मुद्दों पर एक निराधार लड़ाई है, जिसमें से कुछ गुट राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश कर रहे हैं।
ओडिशा के सभी जिलों के लोगों के बीच कई सौहार्दपूर्ण संबंध मौजूद हैं और सामान्य जनसंख्या इस लड़ाई में उलझन में कम दिलचस्पी रखती है। लेकिन, यह तथ्य अभी भी बनी हुई है कि राज्य सरकार को भुवनेश्वर पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय राज्य के समग्र विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

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