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रविवार, 30 अगस्त 2015

ओड़िशा का अपना स्वतंत्र व्रत खुदुरुकुणी

भाद्रव माह मेँ हर रविवार
ओड़िशा के पूर्वी क्षेत्रोँ मेँ
#खुदुरुकुणी #Khudurukuni
नामसे
यह व्रत बहनोँ द्वारा उनके भाईओँ कि लम्बी उम्र के लिये रखाजाता है ।
कभी #उत्कल प्रान्त #शाक्तधर्म प्रभावित हुआ था ।
अतः गाँवदेहातोँ मेँ आज भी #विरजा #बिमला #मंगला #चंडी #चर्चिका आदि देवीओँ का पूजा व व्रत रखाजाता है ।

*. खुदुरुकुणी मेँ देवी मंगला की पूजा कियाजाता है । पुराने जमाने मेँ ग्रामकन्याएँ मिट्टी से मंगला देवी कि मूर्ति बनाया करती थी । आजकल कारिगरोँ के हातोँ बनायेगये मूर्तिओँ से
बड़े धुमधाम से व्रत रखा जाता है । वाकायदा आतिशवाजी
लाईटिगं के साथ मूर्तिविसर्जन भी किया जाता है ।

खुदुरुकुणी दरसल खुदरकुंणी का अपभ्रंस है
ये दो शब्दोँ के मिलन से बना है
खुद+रकुंणी ।
खुद का अर्थ है चावल का दाना
रकुंणी का अर्थ दीवानी ।
चावल कि दाना भोग लगाने से भी देवीमंगला प्रसन्न हो जाती और
भक्तोँ कि मनोकामनाएँ पूर्ण करदेती ।

इस तौहार के पिछे एक जनसृति प्रचलित है

पूर्वोत्तरमे #साधव नामसे प्रसिद्ध व्यापारी कुल रहते थे ।
ये इंडोनेसिआ मालेसिआ आदि क्षेत्रोँ से नाव द्वारा व्यापार किया करते थे ।

ऐसे ही एक साधव घर कि कन्या
#तपोई के सात भाई भी व्यापार करने जाहज लेकर विदेश गये हुए थे ।
इधर बड़ी #भाभीओँ ने एक #विधवा_ब्राह्मणी_बुढ़िया के कहने पर #तपोई को घर से निकालदिया । कई यातना देते हुए भाभीओँ ने सुकुमारी
तपोई को बकरी चराने जैसा काम दिया । तपोई
सब दुःख दर्दोँ को सहन करलेती थी...वो ग्राम देवी मंगला को नित्य वन से चुनकर लायेगये फुलोँ से सजाती थी । एक दिन एक बुढ़ीऔरत ने उसे खास विधीओँ द्वारा भाद्रव माह मेँ देवी मंगला को पूजने के लिये कहा !!
उसने ऐसा ही किया
उसके भाई लौट रहे थे
देवी के प्रेरणा से जाहाजीओँ जलदस्युँ को युद्ध मेँ परास्त किया ।
इधर साधव के घर मेँ बड़ी बहू कि चहेती बकरी "Gharamani" खो गई !
भाभीओँ ने #तपोई को मारा पिटा फिर उसे कहा
जा या तो घरमणी को लेकर लौटना या कहीँ ड़ुब मरना !!
रोती बिलखती हुई तपोई रातमे जगंलो मे #घरमणी को ढ़ुड़ती रही ।
तभी घर लौट रहे सप्तसाधव भाईओँ का जहाज किनारे आ लगा । भाईओ नेँ नजदिक जंगल मेँ किसी की रोने कि आवाज सुना ।
बड़े भाईओँ ने सबसे छोटे भाई को जंगल मेँ जाकर देखने को कहा ।
छोटे भाई ने जंगल मेँ तपोई को पहचान लिया उसे जहाज मेँ ले गया ।
तपोई ने अपने भाईओँ को सारी सच्चाई बतादिया ।
भाईओँ ने जाहज पुजा के लिये अपनी पत्नीओँ को खबर भेज दिया । वो सब तपोई के खोजाने से डरी हुई थी ।
बड़े भाई धनेश्वर ने सभी साधवपत्नीओँ को जहाज मेँ देवी मंगला कि पूजा करने भेजदिआ ।
एक छोटीबहु निलेन्द्री ने च्युँकि
तपोई का पक्ष लिया था उसे छोड़ देवी मंगला ने सभी 6 साधवपत्नीओँ कि नाक काट दिया ।

उधर आश्रित विधवा ब्राह्मणी बुढ़िया साधवपत्नीओँ की गहनोँ को चुराकर भागरही थी सिपाहीओँ ने उसे पकड़ा और राजा के हवाले करदिया ।

इसतरह मंगला माता ने अपनी आश्रित भक्त कि रक्षा करते हुए
उसके भाईओँ से भी उसे मिला दिया ।

"जनसृति के पिछे छिपा इतिहास"

आजसे 1500वर्ष पूर्वतक ओड़िशा मेँ कोई जातपात न था
ओड़िआ या तो किसान ,सैनिक ,मछवारे ,नाविक या कलाकार हुआ करते थे ।
परंतु वैष्णवोँ के आगमन से
धीरे धीरे जातपात का अभ्युदय
होनेलगा ।
ब्राह्मणोँ ने क्षत्रियोँ को साथ कर
तपोई रुपी व्यापारी साधव जाति को अपमानित किया
अंत मेँ साधवोँ ने मंगला रुपी एकता के बलपर
उनपर विजय पा लिया ।
ओड़िशा मे पायेजानेवाले साहु सरनेमधारी साधाराण खेती करनेवाले चषा लोग साधवोँ के वंशज है ।




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