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बुधवार, 12 अगस्त 2015

ओड़िशा और आदिवासी संस्कृति

ओड़िशा एक नहीँ तिन संस्कृतिओँ की मिलनस्थली है
1.आदिवासी
2.द्राविड
3.आर्य
आदिवासी इस क्षेत्र की मूल निवासी है फिर यहाँ द्राविड़ोँ का आगमन हुआ और अन्त मेँ आर्योँ ने इस क्षेत्र मेँ आकर आपसी एकता कायम करवाया ।
इसलिये पंडित नीलकंठ दासजी से लेकर के जर्मन विद्वान हर्मन् कुलके तक सभी ने यही मत दिया कि बर्तमान ओड़िआ संस्कृति आदीवासी संस्कृति से प्रभावित था ।
नीलकंठ जी ने तो यहाँतक कहा है "ओड़िआ भाषा मेँ आर्य है परंतु इनकी संस्कृति सर्वथा द्राविड़ रही है " !!!
इन तिनोँ संस्कृति के समन्वय को तथा जैन ,बौध ,वैदिक धर्म के एकीकृत अवस्था को जगन्नाथ संस्कृति कहाजाता है ।
जगन्नाथ शवरजाति के आदि परमेश्वर हे जिन्हे बादमेँ सभी पंथ के विद्वानोँ ने अपनाया । उन महाप्रभु के प्रथम पूजक आदिवासीओँ का ओड़िशा मेँ 62 जाति पायीजाती है
जिनकी जनसंख्या राज्य कि कुल जनसंख्या की 24% हे ।
इनमे शवर ,मुण्डा ,कोल्ह ,सान्ताळ और भील जातिओँ के बारे मेँ पौराणिक ग्रंथो मेँ बताया गया है ।
ओड़िशा मेँ रहनेवाले आदिवासीओँ का अपना 36 स्वतंत्र उपभाषा हे !! इसमेँ सबसे ज्यादा वोलीजानेवाली भाषाओँ मेँ देशीआ/Kotia ,साद्री और सान्ताली प्रमुख है ।
आदिवासी संस्कृति उत्कलीय संस्कृति कि प्राणकेन्द्र है आर्य सभ्यता अंगप्रत्यगं व द्राविड
सभ्यता रक्त हे ।
मुझे गर्व है मेँ एक ऐसे क्षेत्र मेँ निवाश करता हुँ जहाँ जातपात के नाम पर उत्तरभारतीयोँ कि तरह आपसी भेदभावमेँ नहीँ जिया करते ।
ओड़िशा के वाहार कोई मुझे यदि आदिवासी कहता हे तु मेँ इसे अपनी तारिफ समझता हुँ और उस व्यक्ति छोटी सोच पर मुझे अफसोस भी होता है ।
मानव मात्र मेँ प्रेम को गुरुत्व देनेवाले भोलेभाले प्रकृतिप्रेमी आदिवासीओँ का तो पुराणोँ मेँ भी गौरव बढ़ाया गया है !!!!

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