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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ओड़िशा मेँ मोगलराज

उत्कल राजा मुकुन्ददेव का मुसलमानोँ के हातोँ परास्थ व निहीत होने के पश्चात कई वर्षोँ तक ओड़िशा अँधकार युग मेँ जीनेलगा था । अंत मेँ मुकुन्द देव के कुछ विश्वासी मन्त्रीओँ ने "दनेइ विद्याधर" के पुत्र
"रणेइ राउतरा" को
"रामचँद्र देव" उपाधी देते हुए ओड़िशा का राजा घोषित कर दिया !

मुस्लिम ऐतिहासिक फेरस्ता के किताब से पताचलता है कि
--सुलेमान कारसान उर्फ गरजानी का पुत्र दाउद खाँ कुछदिनोँ तक ओड़िशा खंड का दखलकार था ।
दिल्ली सम्राट अकबर उनदिनोँ बंगाल के अफगान शासनकर्ताओँ से वेहद खफा थे । अंतमे मोगल सेनापति मनेम खाँ व खाँजाहान नेँ अफगानोँ को हराकर 1568 मेँ बंगाल व ओड़िशा को दिल्ली साम्राज्य मेँ मिलादिया था ।--

*फिर कुछदिनोँ बाद
अकबर के सेनापतिओँ मेँ जानेमाने "शवाई मानसिँह"
साम्राज्य संबधीय कार्य तदारख के लिये ओड़िशा आये और यहाँ कि देवालय व समाजिक व्यवस्था देखकर उनके मनमेँ ओड़िशा के लिये अपनापन और प्रगाढ़ हुआ !
कुछदिन ओड़िशा मेँ काटकर जाते समय शवाई मानसिँह ने पुरी राजा रामचंद्र देव को ओड़िशा का संपूर्ण राज सौँपते हुए दिल्ली लौटे ।

1582 मेँ मोगल राज के देवान टोडरमल्ल ओड़िशा आये ! और शावाई मानसिँह कि तरह उन्हे भी ओड़िशा व ओड़िआ लोग खुव भाये ।
जाते समय टोडरमल्ल ने ओड़िशा को करमुक्त करदिया ।

1592 तक मोगल राज ने ओड़िशा पर खास तबज्जो नहीँ दिया था परंतु उसी वर्ष बंगाल के प्रतिनीधि राजा मानसिँह के आगमन से इस क्षेत्र मेँ मोगलराज होना तय हो गया ।
उनदिनोँ ओड़िशा के पुरी राजा रामचंद्र देव
व मुकुन्ददेव के दो पुत्र रामचन्द्र राय तथा छकड़ी भ्रमरवर के बीच ओड़िशा पर प्रभुत्व पाने के लिये होड़ लगी हुई थी ।
परंतु मानसिँह के मध्यस्थता मेँ
सारे विवादोँ का अन्त हो गया ।
इसके तहत पुरी, खोर्दा ,कटक ,घुमुसुर, महुरी तथा गंजाम जिल्ला की खेमण्डी सीमातक कि सारी जमीन रामचंद्र देव को
पूर्ण स्वतंत्र शासन हेतु प्राप्त हुआ ।
वहीँ मुकुन्ददेव के बड़े पुत्र रामचंद्र राय को #आळि व इसके अधीनस्थ सभी क्षेत्र जमीदारी के तहत प्राप्त हुए ।
मुकुन्ददेव के कनिष्ठ पुत्र छकड़ि भ्रमरवर को सारगंगड़ प्राप्त हुआ ।
मानसिँह ने अफगानोँ को परास्त कर उत्कल व बंगाल मेँ कुछ हद तक विद्रोह दमन किया तथा इस क्षेत्र मेँ कुछ काल तक शान्ति स्थापना हो पाया ।
इसबीच अफगानोँ ने 1599 और 1611 मेँ फिर विद्रोह किया परंतु प्रादेशिक शक्तिओँ से उन्हे कड़ी चुनौति मिलता रहा और वो हमला करते रहे ,असफल होते रहे ।
1600 वी सदी मेँ अकबर ने ओड़िशा बंगाल का शासनभार अपने बड़े पुत्र के उपर न्यस्थ किया ।
परंतु अकबर के मृत्यु बाद जाहागिँर ने इस क्षेत्र को अपने छोटे भाई के हातोँ सौँप दिया ।
फिर 1612 से 22 तक ओड़िशा दिल्ली सम्राट के साले साहेब के हातोँ रहा ।
1622 मेँ साहाजाहान के साथ उनके मामा मकरम् खाँ का किसी बात पर झगड़ा हो गया और वो दिल्ली से ओड़िशा आ गया एक वर्ष के अंदर अंदर उसने बंगाल के नवाब को हराकर बंगाल पर राजकरना शुरुकिरदिया था । 1624 तक बंगाल पर राज करने के बाद दिल्ली कि शक्ति के आगे परास्त हो ओड़िशा लौटा !!!

क्रमशः....







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