रामनवमी में श्रीपुरुषोत्तमपुरी में पूजाविधि बहुत ही रोचक है......
युँ तो श्रीजगन्नाथ श्रीविष्णु के अवतारी रुप माने जाते रहे है
परंतु रामनवमी के दिन
श्रीजगन्नाथ मंदिर कि रीतिनीति शाक्तधर्म से प्रभावित प्रतीत होती है....
"रामनवमी के दिन रात्र के समय स्वयं जगन्नाथ माता के रुपमें
भगवन श्रीराम को जन्म देते है......"
अतः उनकीक्षप्रसव वेदना कम् करने के लिए
अष्ठमी के दिन संध्या आरती के बाद
श्रीजगन्नाथ को जेउड़ भोग(ଯେଉଡ଼ ଭୋଗ)तथा गर्भोदक अर्पण कियेजाते है..... ।
नवमी में श्रीविग्रहों का मध्याह्न धूपनीति संपन्न पश्चात जन्मनीति अनुष्ठित होता है.... ।
2 महाजन सेवकों को दशरथ तथा कौशल्या मानकर जन्मविधि पाला जाता है ।
च्युंकि यह गुप्तनीतिओं मे से एक है
अतः कोई इसे देख न लें इसलिए
मंदिर के गर्भगृह में स्थित जयविजय द्वार को
बंद करदियाजाता है ।
श्रीरामजी की जन्म हो जाने के बाद
कर्पुर आरती ,महासुआर गंडुस मसाला तथा दुग्ध मणोही होता है ।
इसके बाद पंडाजी शितलभोग कराने के साथ महासुआर जयविजय द्वारके पास
चरुभात मणोही कराते है.......
जगन्नाथ ना तो पुरुष है न स्त्री
न केवल बुद्ध है न शिव न ही विष्णु.....
वह तो गणेशभेष भी धारण करते है.....
उनमें शैव शाक्त वैष्णव वौद्ध जैन गाणपत्य आदि सभी पंथ तथा जातिगत एकता के
अन्यतम चिह्न है.....
वह सनातन है !!!!
●●●श्रीजगन्नाथजी का रघुनाथभेष●●●●
जिस वर्ष वैशाख शुक्ल नवमी गुरुवार हो तथा मकर राशि श्रावणा नक्षत्रयुक्त हो तथा रामजन्मतिथी पुष्या नक्षत्रयुक्त हो
उसी दिन श्रीजगन्नाथजी की रघुनाथभेष हुआ करता था ।
मान्यता है कि इसी तिथी में अयोद्धापति श्रीराम का राज्यभिषेक संपन्न हुआ था ।
26 अप्रेल 1905 गुरुवार को अंतिमवार
श्रीजगन्नाथ श्रीरामजी के भेष धारण किये थे....
1983 में वही लग्न फिर गिरा था लेकिन कंग्रेसराज में भ्रष्टनेताओं के वजह से मंदिर के लोग भी प्रभावित हुए थे इसलिए वर्षों पुराना रिवाज को तिलांजलि दे दी गयी......
अबतक कुल 9 बार श्रीजगन्नाथजी , श्रीरघुनाथ भेष धारण करचुके है
1.1577
2.1739
3.1809(मुकुन्ददेव के राज्यकाल 14वाँ वर्ष)
4.1833(रामचंद्रदेव के शासनकाल 19वाँ वर्ष)
5.1842(वीर किशोर देव शासनकाल में 3वर्ष)
6.1850
7.1893(द्वितीय मुकुंददेव शासनकाल)
8.1896(मुकुन्ददेव के शासनकाल)
9.1905~26 अप्रेल व्रिटिशराज में......
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