भारत का सर्वप्रथम संगठन
दक्षिण ओडिशा में बनाया गया था
1870 में....
संगठन का नाम था
"ओडिआ हितवादिनी सभा"
काटिगिंआ क्षेत्र के जमीदार
भेंकटेश्वर राउ इसके संस्थापक थे.....
ना केवल राजनैतिक वरन किसी भाषा संस्कृति को
संरक्षण समर्थन करने को बनाया जाने वाला
यह सर्व प्रथम भारतीय संगठन है....
भेंकटेश्वर राउ
कंधमाल के घने जंगलों में वह जैसे सूर्य कि भाँति उदय हुए ।
1866 में उन्हें जमीदारी मिलने के बाद से ही
वह अपने मन के विचारों को कार्य में रुपान्तरण करने के लिए कई गाँव सहरों मे घुम घुम कर लोगों को ओडिआ भाषा आन्दोलन कि यथार्थता समझाने में लग गये थे ।
हदगड,मुठा,चकापाद,अठर,करडा,रणदा,गदापुर,पालुर,हुमा,गंजा,महुरी,सुरंगी,जरडा़,खल्लिकोट,आठगड़,घुमुसर,धराकोट,सोरडा़,खेमुंडि,चिकिटि,जळन्तर,पारळा,
मंजुसा आदि क्षेत्रों के स्थानीय राजा तथा जनसाधारणों में जनजागरण ले आने में भेंकटेश्वर राउ सफल हुए ।
1870 में ही ओडिआ हितवादिनी सभा का सर्वप्रथम सभा रसुलकुंडा(भंजनगर) में आयोजित हुआ था....
और यही वह सभा थी जहाँ से पहली बार
बंगाल,मांद्राज,मध्यप्रदेश मे बंटे हुए ओडिआ भाषी क्षेत्रों को एकजुट करने के लिए संखनाद हुआ था.....
इस सभा में दक्षिण ओडिशा क्षेत्रों में तेलुगुभाषी लोगों का प्रार्दुभाव तथा ओडिआभाषी क्षेत्रों मे तेलुगु प्रचलन कि उनकी कोशिशों का मुंहतोड जवाब
दियागया था ।
मंद्राज सरकार के लाट को इस सभा से मिले स्मारक पत्र के बदौलत ही
मांद्राज राज्य मे सामिल ओडिआभाषी क्षेत्रों मे सभी सरकारी कार्यालय तथा स्कुलों में 4 मार्च 1872 को
ओडिआ भाषा को सरकारी भाषा का मान्यता मिला.....
इस घटना से प्रेरित हो कर हीं बाद में कटक सम्बलपुर तथा बालेश्वर में भाषा को लेकर बुद्धिजीवीओं में जागृति देखने को मिली थी.....
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