जब राजपूतों की बात उठती है, तो पूरे भारत के लोग कहते हैं कि वे महान देशभक्त, वीर और विवेकी थे। लेकिन जैसे-जैसे मुगलों ने उत्तर भारत में अपना प्रभुत्व फैलाना शुरू किया, कई राजपूत भी उनके गुलाम बनने लगे।
ऐसे ही एक गुलाम राजपूत, केशो दास, के कारण ओडिशा और श्रीमंदिर सबसे अधिक लूटा और अपमानित हुआ।
मुगल सम्राट जहांगीर ने ओडिशा के पहले मुगल सूबेदार के रूप में हासिम खां (1607-1611 ई.) को नियुक्त किया था। इसके बाद मुगल बादशाह को संतुष्ट करने के लिए कटक जिले के जागीरदार और मुगल सेनापति केशो दास मारु ने श्रीजगन्नाथ मंदिर को लूट लिया।
यह जघन्य हमला आषाढ़ मास में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के आयोजन के समय श्रीक्षेत्र में हुआ था। श्रीगुंडिचा मंदिर में श्रीजगन्नाथ चतुर्द्धामूर्ति रथयात्रा के कारण विराजमान थे। उस समय सभी का ध्यान श्रीगुंडिचा मंदिर पर था। तभी केशो दास मारु ने बड़ी संख्या में राजपूत सैनिकों के साथ श्रीजगन्नाथ मंदिर में दर्शन के बहाने प्रवेश किया और रत्नभंडार को लूट लिया।
हिंदू राजपूत होने के बावजूद केशो दास मारु एक मुस्लिम गुलाम बन चुका था, जिसके कारण उसमें हिंदू धर्म के प्रति कोई आस्था नहीं बची थी। उसकी राजपूत सेना ने सेवक ब्राह्मणों पर अकथनीय अत्याचार किए और मंदिर से करोड़ों रुपये मूल्य के धन-रत्न लूट लिए।
गजपति पुरुषोत्तम देव (1600-1621 ई.) को इस लूट की खबर मिलने पर उन्होंने रथों और बड़ी संख्या में पैक सैनिकों की सहायता से मंदिर के चारों ओर रथों को खड़ा कर श्रीमंदिर को घेर लिया। खोर्धा गजपति के प्रचंड हमले से भयभीत केशो दास मारु ने कोई और उपाय न पाकर मंदिर और उसके परिसर में मौजूद छत, त्रास, आढे़णी, बैरख, और चांदुआ को फाड़ दिया। उसने मंदिर परिसर में मौजूद बांस के अगले हिस्से में कपड़ा लपेटकर उसमें तेल और घी डालकर आग लगा दी और मंदिर परिसर के बाहर चारों ओर खड़े रथों पर आग की लपटें फेंक दीं।
केशो दास के पराजित होने की खबर सुनकर बंगाल के सूबेदार इस्लाम खां ने खूजा ताहिर मोहम्मद बक्ति नामक सेनापति को सहायता के लिए ओडिशा भेजा। उसने ओडिशा के सूबेदार हासिम खां के साथ मिलकर केशो दास की मदद की। लेकिन गजपति की हार देखकर बक्ति ने उन्हें युद्ध बंद कर केशो दास के साथ संधि करने की सलाह दी।
गजपति राजा के सामने निम्नलिखित संधि की शर्तें रखी गईं:
(क) खोर्धा गजपति महाराजा पुरुषोत्तम देव अपनी पुत्री राजजमा कनकप्रतिमा देवी का विवाह जहांगीर से करेंगे।
(ख) 9.3 लाख रुपये मुगल बादशाह को पेशकश के रूप में दिए जाएंगे।
(ग) अपनी भगिनी का विवाह केशो दास के साथ कराएंगे।
(घ) युद्ध में हुए नुकसान के लिए केशो दास को एक लाख रुपये क्षतिपूर्ति दी जाएगी।
श्रीमंदिर और तत्कालीन उत्कल देश को बचाने के लिए गजपति राजा को इन शर्तों पर सहमत होने के लिए मजबूर होना पड़ा। गुलाम हिंदू-विरोधी राजपूत केशो दास ने ओडिशा से एक बलवान हाथी और पांच मादा हाथियों को भी ले लिया। पिशाच जहांगीर को उपहार देने पर जहांगीर अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने केशो दास को 4 हजार अश्वारोही सेना का सेनापति बनाया, साथ ही एक पताका, मूल्यवान पोशाक, मणिमुक्ता-जड़ित खंजर, कमरपट्टी, एक तेज गति वाला घोड़ा, और रत्न-जड़ित जीन पुरस्कार के रूप में दी।
संधि के दौरान राजजमा कनकप्रतिमा देवी घोड़े पर सवार होकर चतुराई से नरसिंहपुर चली गईं और बाद में उन्होंने संबलपुर के राजा से विवाह कर लिया।
इस युद्ध में मान-सम्मान और धन-संपत्ति खोकर राजा पुरुषोत्तम देव दुखी मन से खोर्धा राज्य छोड़कर राजमहेंद्रा चले गए। एक हिंदू होने के बावजूद हिंदू-विरोधी नीति अपनाकर केशो दास मारु ने श्रीजगन्नाथ मंदिर को लूटा, जिसका विस्तृत वर्णन ओडिशा की मादलापांजी में किया गया है।
ओडिशा पर हमले से मिले इस अनुचित लाभ को देखकर गुलाम राजपूत और उनके मालिक मुल्ला उत्तर भारतीय बार-बार ओडिशा पर हमला करने से नहीं हिचकिचाए।
हासिम खां के बाद 1611 में एक अन्य राजपूत, कल्याण मल, ओडिशा का सूबेदार बनकर आया। लेकिन उसने दायित्व संभालते ही हमले शुरू कर दिए। इस दौरान उसने भारी मात्रा में सोना, चांदी, और संपत्ति लूट ली। 1617 में मकरम खां ने मंदिर में प्रवेश कर मनमानी संपत्ति लूटी। पुरी पर हमले के कारण भगवान जगन्नाथ को बाणपुर के गजपदा में गुप्त रूप से रखा गया। उसने भी बहुत सारी लूटी हुई संपत्ति ले ली।
आज उत्तर भारत में बहुत से लोग हिंदू-हिंदू चिल्लाते हैं, लेकिन यह अत्यंत कटु और हलाहल विष के समान सत्य है कि उनके ही पूर्वजों ने मुगल शासनकाल में मुस्लिम शासकों के चरण-चाटुकार बनकर हिंदू राज्य ओडिशा और हिंदुओं के परम आराध्य श्रीजगन्नाथ के मंदिर को अनुचित क्षति पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
(उक्त ऐतिहासिक तथ्य महाविद्यालय में पढ़ाए जाने वाली एक इतिहास पुस्तक से लिया गया है)