या महिमा अप्रमिता
अपरुपे सुशोभिता
दिव्य अनिन्द्य कान्तिज्वळ
हृदय अर्पित छन्दे
कोटि सुत सुता बन्दे
चरणारबिन्दे सकळ
श्रेष्ठा तु जननी उत्कळ ।।
प्रकटिता चर्तुभूजा
धारण श्रीनेत्र ध्वजा
बक्षे शोभित बनमाळ
बारणारोहिणी रुप
हस्ते शंख शरचाप
करमंतित निळोत्पळ
श्रेष्ठा तु जननी उत्कळ .......।।
कुसुम मंजुळ कुंज
खंजि महीधर पुंज
घेनी निघंच बनाचंळ
निर्झरिणी कळकळ
सुनीळ तटिनी जळ
तटप्रांते उर्मी उत्थाळ
श्रेष्ठा तु जननी उत्कळ .......।।
●●●कवि तपन दास ●●●●
यह है शुद्ध संस्कृतप्राण ओडिआ...भाषा...
आज भारतके सभी आर्य भाषाएँ कलुषित हो चुकि हैं
अरवी पार्सी शब्द बोलकर लोगों ने प्राचीन संस्कृत शब्दों को बुड्ढों का शब्द मानलिया और धडल्ले से त्याग भी दिया लेकिन
"संस्कृती के देश #कलिंगोत्कल नें न तो संस्कृत शब्दों को त्यागे न ही संस्कृत के मूल व्याकरणगत नियमों का त्याग किया....
वह तो आज भी स्वयं में संस्कृत को जीवित रख पाने में सफल है और कसम है
श्रीजगन्नाथजी का ध्वज उडता रहेगा ...
जबतक ओडिआओं में स्वाभिमान जिंदा रहेगा
हमारी भाषा और संस्कृती भी जीवित रहेगी
जय हिंद
बंदे उत्कल जननी
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